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Kartavya aur Satyata /PUC 2nd year (Sahitya Gaurav) Karnataka Board/Summary/Question & Answer ( कर्तव्य और सत्यता...सारांश)

                                                                                 कर्तव्य और सत्यता

                                                                                            डॉ. श्यामसुंदर दास

लेखक परिचय : 

श्यामसुंदर दास का जन्म १८७५ ई. में काशी में हुआ।

१८९७ में बी.ए. की उपाधि लेकर स्कूल में पढ़ाने का कार्य किया।

१९२१ ई. में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।

१६ जुलाई १९९३ में नागरी प्रचारणी सभा की स्थापना की।

हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट की उपाधि।

१९४५ ई. में मृत्यु हुई।


प्रमुख रचनाएँ :

नागरी वर्णमाला, साहित्य लोचन, भाषा विज्ञान, हिंदी भाषा का विकास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, हिंदी भाषा साहित्य. गोस्वामी तुलसीदास, भाषा रहस्य, मेरी आत्म कहानी आदि।

भावार्थ :

लेखक ने इस पाठ द्वारा जीवन में सत्यता और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा बनाने का सुझाव दिया है। झूठ बोलना, पाप करना तथा कायरता जैसे दुर्गुणों को त्यागकर सत्यता को अपनाने के लिए कहा है। मनुष्य का जीवन कर्तव्यों को पूरा करते हुए चला जाता है। अगर हम इन कर्तव्यों को नहीं करते हैं तो हम लोगों की नज़रों में गिर सकते हैं। कर्तव्यों की शुरुवात परिवार से ही होती है, जिसमें बच्चों का कर्तव्य माता-पिता के प्रति और माता-पिता का कर्तव्य बच्चों के प्रति देखने मिलता है। इसके अलावा पति-पत्नी, स्त्री-पुरुष, स्वामी-सेवक का भी कर्तव्य एक-दूसरे के प्रति दिखाई पड़ता है। घर के बाहर यही कर्तव्य मित्रों, पड़ोसियों तथा प्रजा में भी दिखाई देता है। हर तरफ़ कर्तव्य ही दिखाई देते हैं और उनको पूरा करना हमारा धर्म है। इससे ही हमारे चरित्र की शोभा बढ़ती है। 

हमें कोई भी कर्तव्य या काम पूरा करते समय अच्छी प्रवृत्ति अपनानी चाहिए। हमारे अंदर एक शक्ति होती है जो हमें बुरे काम करने से रोकती है। जब भी कोई मनुष्य बुरा काम करता है तो वह पहले अपने आप ही लजाता या दु:खी होता है। जो मनुष्य चुराकर कोई भी चीज़ लेता है तो वह मन ही मन दु;खी रहता है बल्कि माँगकर लेने वाला हमेशा प्रसन्न रहता है। उसके मन में किसी भी प्रकार का पछतावा या डर नहीं रहता है। हमारा मन अगर कोई कार्य करने के लिए तैयार नहीं होता है तो हमें उसे बिल्कुल नहीं करना चाहिए। हमें सदैव धर्म के रास्ते पर चलकर काम करना चाहिए। 

धर्म के रास्ते पर चलते समय हमारी सबसे बड़ी बाधा बनती हैं- चित्त की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता। ऐसे में अगर हमारा मन पक्का निर्णय लेता है तो हमें उस काम को करना चाहिए। लेकिन वही अगर हमारा मन उसे करने में समय ले रहा है या दुविधा में रहता है तो हमें उसे नहीं करना चाहिए। आजतक जितने भी महान व्यक्तियों ने काम किए हैं उन सभी ने अपने कर्तव्य को श्रेष्ठ माना है। इसलिए जिनमें भी यह गुण है संसार ने उनका आदर-सत्कार किया है। एक समय की बात है जब एक अंग्रेजी जहाज़ समुद्र से सफ़र कर रहा था। उस जहाज़ से अनेक स्त्री-पुरुष और बच्चे सफ़र कर रहे थे। तब अचानक उस जहाज़ में एक छेद हो गया। उस जहाज़ को पानी में डूबने से बचाने के लिए अनेक प्रयास किए गए लेकिन उसे बचाने में असफ़ल हुए। उस जहाज़ में फ़ँसी स्त्रियों और बच्चों को नाव में बिठाकर उनके प्राणों की रक्षा करना उन पुरुषों ने अपना कर्तव्य समझा और पूरा किया। इसी घटना के विरुद्ध और एक घटना घटी थी।जिसमें फ़्रांस देश का जहाज़ भी इसी तरह डूब रहा था। लेकिन उस जहाज़ के पुरुषों ने स्त्रियों और बच्चों को वहीं पर छोड़ दिया और अपनी जान बचाई। इस नीच कर्म के कारण पूरे संसार में उनकी निंदा होने लगी। इस प्रकार के लोग स्वार्थ भावना से अपना कर्तव्य का पालन नहीं करते और संसार में लज्जित होते हैं तथा सब उनकी घृणा करते हैं।

कर्तव्य के साथ-साथ सत्यता का पालन करने वाला मनुष्य संसार में अपने कार्यों से सफ़लता प्राप्त करता है। वही संसार में कोई काम अगर आप झूठ बोलने से करते हैं तो आपको बड़ा दु:ख भोगना पड़ सकता है। संसार में सबसे बड़ा पाप झूठ बोलना है। मनुष्य पाप, कुटिलता और कायरता के कारण झूठ बोलता है। कुछ लोग आवश्यकता के कारण झूठ बोलते हैं तो कुछ लोग झूठ बोलने में अपनी चतुराई समझते हैं। झूठ का सहारा लेकर दूसरों को धोखा देना या अपने आप को बचाने में गौरव का अनुभव करते हैं। ऐसे लोग झूठ के सहारे समाज को खत्म करते हैं जो निंदनीय और अधर्म का काम है। 

झूठ बोलने के अनेक कारण हैं जैसे- बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना, किसी बात को छिपाना, भेद बदलना, दूसरों के हाँ में हाँ मिलाना, प्रतिज्ञा करके उसे पूरा न करना तथा सत्य को न बोलना आदि। ये सब बातें झूठ बोलने के बराबर हैं। कुछ तो अपने अंदर कुछ न करने के गुण रहने के बावज़ूद भी ऐसा व्यवहार करते हैं कि जैसे बड़े गुणवान हो। लेकिन भेद खुलने के बाद सबकी नज़रों में गिर जाता है।

अत: हम लोगों का यही परम धर्म है कि हमेशा सत्य बोले और जीवन में झूठ का अंगीकार न करें। सत्यता और कर्तव्यनिष्ठा से समाज में हमारा मान-सम्मान बढ़ता है। सत्यवादी को सभी पसंद और झूठे से घृणा करते हैं। इसलिए अपने कर्तव्य का पालन करने व सच बोलने से मन में आनंद की अनुभूति होती है।

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

1.  हम लोगों का परम धर्म क्या है?

उत्तर- कर्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है।

2.  कर्तव्य करने का आरंभ पहले कहाँ से शुरु होता है?

उत्तर- कर्तव्य करने का आरंभ पहले घर से ही होता है।

3.  कर्तव्य किस पर निर्भर है?

उत्तर- कर्तव्य न्याय पर निर्भर है।

4.  कर्तव्य करने से क्या बढ़ता है?

उत्तर- कर्तव्य करने से मान-सम्मान बढ़ता है।

5.  धर्म-पालन करने में सबसे अधिक बाधा क्या है?

उत्तर- धर्म पालन करने में सबसे अधिक बाधा चित्त की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की दुर्बलता है।

6.  मन ज़्यादा देर तक दुविधा में पड़ा रहा तो क्या आ घेरेगी?

उत्तर- मन ज़्यादा देर तक दुविधा में पड़ा रहा तो आलस्य और स्वार्थपरता आ घेरेगी।


  


 

                                                

                                            



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