रहीम के दोहे
भावार्थ-
दोहा-१ रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फ़िर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का धागा हमें जल्दबाजी में नहीं तोड़ना चाहिए। अगर यह धागा एक बार टूटा तो दुबारा नहीं जुड़ सकता और जुड़ा भी तो वह पहले जैसे नहीं होगा बल्कि उसमें गाँठ पड़ी देखने मिलेगी। अर्थात रिश्ता एक धागे समान नाजुक और मुलायम होता है जो एक बार टुट गया तो पहले जैसा उसमें विश्वास नहीं रहेगा इसलिए हमें रिश्ते को किसी भी बात को लेकर तोड़ने नहीं देना है। जिससे हमें बाद में पछताना पड़े।
दोहा-२ रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥
रहीम जी कहते हैं कि हमें अपनी मन की पीड़ा को मन में ही छुपाकर रखना है। लेकिन हम अपनी मन की पीड़ा को दुसरों के सामने सहानुभूति प्राप्त करने के लिए व्यक्त करते हैं तो लोग उसे सुनकर हमारी मदद करने की बजाय हमारा मज़ाक उड़ा सकते हैं। कोई भी हमारी पीड़ा को ना लेगा ना ही दूर करेगा। इसलिए हमारी पिड़ा को हमें अपने मन में ही रखते हुए स्वयं ही उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
दोहा-३ एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फ़ूलै फ़लै अघाय॥
रहीम जी कहते हैं कि एक को प्राप्त करने से हमें सब कुछ प्राप्त हो सकता है। और उस एक को हमने प्राप्त नहीं किया तो जो प्राप्त किया है वह भी हमसे छिना जा सकता है। जैसे अगर हमें फ़ल और फ़ूल चाहिए तो हमें उस पेड़ की जड़ को पानी डालना चाहिए ना कि फ़ल तथा फ़ूल को। अगर हमें फ़ल तथा फ़ूल चाहिए सोचकर उन्हीं को पानी डालते रहेंगे तो वे फ़ल तथा फ़ूल खराब होंगे अर्थात - हमें जीवन में सुख या आनंद चाहिए तो हमें भगवान को प्राप्त करना चाहिए क्योंकि सभी सुख-दुखों का निर्माता वही है। अगर हम उस सृष्टि के निर्माता को प्राप्त करने की बजाय भौतिक सुखों के पीछे भागेंगे तो सुख की जगह दुख की अनुभूति होगी।
दोहा-४ चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
रहीम कहते हैं कि चित्रकूट पर्वत पर अयोध्या के राजा राम चौदह वर्ष तक आनंद से रहे। वैसे ही जिस पर भी संकट आते हैं, उन्हें इस प्रदेश में आना चाहिए। अर्थात -अयोध्या के राजा राम अपने पिता की आज्ञा से वन में जा रहे थे तब बहुत दु:ख और कष्ट से गुजर रहे थे। लेकिन जैसे ही वे चित्रकूट इस सुरम्य जगह गए अपने दुखों और कष्टों कॊ भूलकर चौदह वर्षों तक उस जगह आनंद से बिताए। वैसे ही जिनको भी दु:ख एवं कष्टों को भूलकर आनंद से जीवन बिताना है, वे इस प्रदेश में जाकर आए।
दोहा-५ दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
रहीम जी कहते हैं कि दोहे का अर्थ गहरा होता है लेकिन उसमें अक्षर बहुत ही कम होते है। वैसे ही नट (कलाकार) दिखने में सामान्य दिखता है परंतु उसकी कला असामान्य होती है। अर्थात दोहा सिर्फ़ दो पंक्तियों में लिखा जाता है जो दिखने में बहुत ही छोटा दिखता है परंतु उसमें गहरा अर्थ छिपा होता है ठीक वैसे ही एक नट की पोशाक या पहनावा भले ही साधारण हो लेकिन उसमें छिपी कला महान या असाधारण होती है। मतलब हमें किसी भी चीज़ के बाहरी गुणों को ना देखकर उसके अंतर्गत गुणों को देखना है।
दोहा-६ धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
रहीम जी कहते हैं कि पंक (कीचड़) जल गंदा होता है लेकिन वह छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझाता है। उसकी तुलना में समुद्र का जल गहरा, स्वच्छ, निर्मल होने पर भी किसी की प्यास नहीं बुझाता क्योंकि वह खारा होता है। वैसे ही धनी या अमीर व्यक्ति अगर धन का उपयोग अगर किसी की मदद करने में नहीं करता है तो उसका अमीर होना बेकार है। अर्थात- हमारे पास मदद करने लायक अगर धन या संपत्ति है तो हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जिनको हमारी मदद की जरुरत है।
दोहा-७ नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
रहीम जी कहते हैं कि संगीत पर खुश होकर हिरण अपनी जान गँवा देता है, ठीक उसी प्रकार कुछ मनुष्य दूसरे से खुश होकर उस पर धन न्योछावर कर देते हैं। रहीम कहते हैं, अगर कोई मनुष्य किसी की कला पर खुश होकर उसे कुछ नहीं देता है तो वह मनुष्य उस पशु से भी बदतर है। अर्थात अगर कोई आपको कुछ देता है तो उसके बदले में आपको भी उसे कुछ ना कुछ देना चाहिए।
दोहा-८ बिगरी बात बनै नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फ़ाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
रहीम जी कहते हैं कि एक बार अगर बात बिगड़ जाती है तो लाख कोशिश करने पर भी वह नहीं बनती। जैसे दूध एक बार फ़टने पर उससे मक्खन नहीं निकलता। अर्थात हमें किसी से भी बात करते समय सोच-समझकर करनी चाहिए जिससे दूसरे को बुरा ना लगे क्योंकि मुँह से निकले हुए शब्द वापस नहीं लिए जा सकते इसलिए ऐसी बात मत करना कि सामनेवाला दुखी या नाराज हो और दोनों के रिश्ते में अविश्वास बनेगा।
दोहा-९ रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आये सुई, कहा करे तरवारि॥
रहीम जी कहते हैं कि बड़े व्यक्ति को देखकर छोटे या गरीब व्यक्ति को नहीं भूलना चाहिए। जैसे तलवार को देखकर हमें सुई को भूलना नहीं चाहिए। अर्थात हर एक चीज़ का अपनी-अपनी जगह महत्व है। जो काम बड़ा व्यक्ति करेगा वह छोटा नहीं वैसे ही तलवार जो काम करेगी वह सुई नहीं और सुई का काम तलवार नहीं कर सकती। इसलिए हर एक चीज़ का सम्मान करते हुए उसके महत्व को समझना चाहिए।
दोहा-१० रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपत्ति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
रहीम जी कहते हैं कि आपको खुद की संपत्ति के बिना कोई भी संकट के समय में नहीं बचा सकेगा। जैसे जलज(कमल) को बिना पानी के सूरज भी नहीं बचा पाएगा। अर्थात मनुष्य को स्वावलंबी होना चाहिए। उसे दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अगर कोई हर बार दूसरे पर निर्भर रहता है तो उसे संकट के समय में कोई भी बचा नहीं पाएगा। इसलिए मनुष्य स्वावलंबी रहने पर वह हर मुसीबत से अपने बल के सहारे बाहर निकल सकता है।
दोहा-११ रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
रहीम जी ने पानी का महत्व बताया है। बिना पानी के सब कैसे सुना है इसका अलग-अलग अर्थों द्वारा वर्णन किया है। रहीम जी ने पानी के तीन अर्थ बताए हैं। मोती के लिए पानी का अर्थ है-चमक। बिना चमक के मोती का कोई मूल्य नहीं है। मोती की चमक से ही उसका मूल्य तय किया जाता है। मनुष्य के लिए पानी का अर्थ है- मान-सम्मान। मनुष्य के जीवन में अगर मान-समान नहीं है तो उसका जीवन बेकार है। मनुष्य का सम्मान ही उसकी जिंदगी का मूल्य तय करता है। और पानी का तीसरा अर्थ है-जल। चून(आटा) से अगर रोटी बनानी है तो जल का उसमें मिलना जरुरी है। बिना जल के आटे से रोटी नहीं बन सकती है। मतलब आटे का महत्व तभी बढ़ेगा जब उसकी रोटी बनेगी। और रोटी तभी बनेगी जब उसमें जल मिलेगा।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोंत्तर:
प्रश्न १. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?
उत्तर- धागा एक बार टूटने पर पहले की तरह नहीं जुड पाता क्योंकि उसमें गाँठ पड़ जाती है। उस धागे के समान ही प्रेम का रिश्ता भी होता है जो एक बार टूट गया तो उस रिश्ते में पहले की तरह विश्वास या लगाव नहीं रहता है। उस प्रेम के रिश्ते में दरार पड़ी हुई देखने को मिलती है।
ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?
उत्तर- हमें अपना दुख दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहिए क्योंकि दूसरे आप के दुख को समझकर उसे हलका करने की बजाय आपका मजाक उड़ा सकते हैं।
ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
उत्तर- रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि सागर का पानी स्वच्छ, निर्मल और विशाल मात्रा में होने बावजूद भी वह किसी की प्यास नहीं बुझा सकता क्योंकि वह खारा होता है। उसकी तुलना में पंक (कीचड़) जल भले स्वच्छ, निर्मल ना हो लेकिन वह छोटे-छोटे जीवों की प्यास तो बुझाता है। जल का महत्व प्यासे की प्यास बुझाने में है अगर वह किसीकी प्यास नहीं बुझाता है तो उसका महत्व शून्य के बराबर है।
घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
उत्तर- मूल (जड़) को पानी सींचने से जैसे फ़ल और फ़ूल अपने-आप मिलते हैं, वैसे ही भगवान की भक्ति कर लेने से या भगवान को प्राप्त कर लेने से जीवन में सुख-शांति के साथ सभी काम अपने-अपने ही आप बन जाते हैं।
ड.) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?
उत्तर- कमल का जीवन जल पर ही निर्भर रहता है। उसकी मूल संपत्ति जल ही है। सूर्य उसकी बाहरी शक्ति है जिससे कमल बढ़ सकता है लेकिन बिना जल के सिर्फ़ सूर्य की शक्ति से वह जीवित नहीं रह सकता। कमल को जीवित रहना है तो उसके पास जल इस भीतरी शक्ति का होना आवश्यक है। इसलिए बिना जल के कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर पाता है।
च) अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?
उत्तर- अवध के नरेश राजा श्रीराम को चित्रकूट जाना पड़ा क्योंकि उन्हें उनके पिता जी की आज्ञा का पालन करना था। श्रीराम ने चौदह साल तक वनवास के दौरान चित्रकूट वन में रहकर अपने पिता की आज्ञा पूरी की थी।
छ) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?
उत्तर- नट कुंडली (लोहे का घेरा) में से अपने शरीर को सिकुड़कर बाहर निकलने की कला में सिद्ध होता है।
ज) ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी का महत्व यह है कि मोती के लिए पानी का अर्थ है-चमक। बिना चमक के मोती का कोई मूल्य नहीं है। मोती की चमक से ही उसका मूल्य तय किया जाता है। मनुष्य के लिए पानी का अर्थ है- मान-सम्मान। मनुष्य के जीवन में अगर मान-समान नहीं है तो उसका जीवन बेकार है। मनुष्य का सम्मान ही उसकी जिंदगी का मूल्य तय करता है। और पानी का तीसरा अर्थ है-जल। चून(आटा) से अगर रोटी बनानी है तो जल का उसमें मिलना जरुरी है। बिना जल के आटे से रोटी नहीं बन सकती है। मतलब आटे का महत्व तभी बढ़ेगा जब उसकी रोटी बनेगी। और रोटी तभी बनेगी जब उसमें जल मिलेगा।