Bade Ghar ki Beti PUC-1st Year/Summary/Qustion & Answers /Karnataka State Board (बडे घर की बेटी ..Question/Answer )
बडे घर की बेटी
प्रेमचंद
लेखक परिचय :
* प्रेमचंद का जन्म लमही नामक गाँव में 1880 में हुआ था।
* बचपन का नाम गुलाबराय था।
* पिताजी का नाम अजायबराय और माताजी का नाम आनंदीदेवी था।
* कहानी सम्राट और उपन्यास सम्राट की उपाधि।
* मृत्यु 8 अक्टूबर सन 1936 को हुई।
प्रमुख रचनाएँ :
उपन्यास : गोदान, गबन, कर्मभूमि, सेवासदन, रंगभूमि तथा निर्मलाआदि।
भावार्थ :
‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने मध्यम वर्ग के परिवार की उस घटना को चित्रित किया है जो अनेक घरों में देखने मिलती है।
बेनीमाधव सिंह एक जमींदार थे। उनके पिता के समय यह परिवार धन-धान्य से संपन्न था। लेकिन आधी संपत्ति कोर्ट-कानून के कारण वकीलों को भेंट हो चुकी थी। एक दूध देने वाली बूढ़ी भैंस के शिवाय उनके पास कुछ भी नहीं था। ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़ा बेटा श्रीकंठ जिसने बी.ए. की डिग्री प्राप्त की थी और छोटा बेटा लालबिहारी। श्रीकंठ शरीर से निर्बल और चेहरा कांतिहीन था परंतु बहुत समझदार और होशियार था। उसका संयुक्त परिवार, भारतीय संस्कृति और आयुर्वेदिक औषधियों के प्रति विश्वास और आदर था। छोटा बेटा दोहरे बदन का और सजीला जवान था।
श्रीकंठ को गाँव में सम्मान की नज़र से देखा जाता था। उसने गाँव में अनेक उत्सव और कार्यक्रम की शुरुवात की थी। वह संयुक्त परिवार को अधिक महत्व देता था लेकिन जो स्त्रियाँ परिवार से अलग रहने में रुचि रखती थी, वे उसका तिरस्कार करती थी।
श्रीकंठ का विवाह आनंदी से होता है। वह बड़े उच्च कुल की लड़की थी। उसके पिताजी भूपसिंह रियासत के ताल्लुकेदार थे। घर वैभवशाली और सुख-सुविधाओं से भरा था। भूपसिंह की सात बेटियाँ थी। आनंदी चौथी बेटी थी जो गुणवति और रुपवति थी। वे अपनी बेटी आनंदी से ज़्यादा स्नेह करते थे और उसका विवाह अच्छी जगह करना चाहते थे। श्रीकंठ के स्वभाव पर रीझकर उन्होंने अपनी बेटी आनंदी का विवाह बड़े धूम-धाम से उसके साथ करवा दिया। आनंदी शादी करके अपने पति के घर आती है। मायके में अनेक सुख-सुविधाओं में पली-बड़ी आनंदी को ससुराल में वे सब चीजें देखने नहीं मिलती हैं। लेकिन थोड़े ही दिनों में वह अपने-आप को ससुराल की परिस्थिति के अनुकूल बना लेती है।
एक दिन लालबिहारी दो चिड़िया लेकर आता है और आनंदी को पकाने के लिए कहता है। आनंदी मांस पकाते समय घर में बचा घी उसमें डाल देती है जिससे दाल में डालने के लिए घी नहीं बचता। लालबिहारी दाल में घी न पाकर आनंदी पर गुस्सा होता है। आनंदी ने सब हकिकत बताने पर भी वह उसके मायके के बारे में निंदनीय शब्दों का प्रयोग करता है। आनंदी इस बात को सहन नहीं करती है और उसको उलटा जवाब देती है। लालबिहारी गुस्से से खाने की थाली उठाकर पलट देता है और उसकी तरफ़ खड़ाऊँ फ़ेंककर मारता है। अगर आनंदी हाथ आगे नहीं करती तो उसका सिर फ़ट जाता। दोनों के बीच हुए झगड़े में बेनीमाधव सिंह भी लालबिहारी की बाजू में खड़ा हो जाता है।
श्रीकंठ शनिवार को घर आते हैं। लालबिहारी अपने भाई को आनंदी की गलती पर मुँह सँभाल कर बात करने को कहता है। आनंदी भोजन होने के बाद श्रीकंठ को कमरे में आते ही सब घटी घटना बताते हुए रोने लगती है। जिसे सुनकर गुस्से से श्रीकंठ की आँखें लाल हो जाती हैं। वह सुबह उठकर अपने पिताजी को उस घर में न रहने की बात करता है। जिस घर में उसकी पत्नी की इज्ज़त ना हो और वह सुरक्षित ना हो ऐसे घर में वह न रहने की बात करता है। गाँव में टूटते घरों को बचाने वाला श्रीकंठ आज खुद के घर को तोड़ता देखकर गाँव के लोग हर्ष और आश्चर्य से देखने तथा सुनने लगे।
बेनीमाधव श्रीकंठ को समझाते हैं कि लालबिहारी नासमझ है। उसे जो भूल हुई है, इसके लिए तुम उसे माफ़ कर दो। लेकिन श्रीकंठ पिताजी की बात सुनता नहीं है। वह लालबिहारी के साथ एक ही घर में न रहने की बात करता है। लालबिहारी अपने भाई की बातें दरवाज़े के पीछे खड़े होकर सुनता है। वह अपने पिताजी से भी ज्य़ादा अपने भाई का आदर करता था लेकिन उसके मुँह से ऐसी बातें सुनकर वह रोने लगा। वह इस बात के लिए अपने भाई से तमाचे खाने के लिए भी तैयार था लेकिन उसने कभी सोचा नहीं था कि भाई उसके बारे में ऐसा भी कह सकता है। वह रोता हुआ अपने कमरे में आता है और कपड़े बदलकर भाभी के कमरे के दरवाज़े पर आकर बोलता है, “ भाभी, भैया को मेरे साथ रहना पसंद नहीं है। वे मेरा मुँह नहीं देखना चाहते हैं इसलिए मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ। मुझसे जो अपराध हुआ उसके लिए क्षमा करना।
आनंदी ने लालबिहारी की शिकायत की थी लेकिन अब वह भी इस बात से पछता रही थी। वह स्वभाव से दयावती थी। उसे नहीं लग रहा था कि बात इतनी बिगड़ सकती है। लालबिहारी का रोता चेहरा देखकर वह श्रीकंठ को उसे घर को छोड़ जाने से रोकने को कहती है लेकिन श्रीकंठ रोकने के लिए आगे नहीं आता। ऐसे में आनंदी लालबिहारी का हाथ पकड़कर जाने से रोकती है और अपने मन में उसके प्रति गुस्सा न होने की बात करती है। अंत में श्रीकंठ का भी हृदय पिघल जाता है और दोनों एक-दूसरे के गले मिलकर रोने लगते हैं। बेनीमाधव सिंह बाहर से घर में आकर दोनों भाइयों को गले मिलता देखकर आनंदित हो जाते है और बोल उठते हैं-“बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता काम बना लेती हैं।
मुहावरे :
* खून का घूँट पीकर रह जाना - क्रोध को दबाकर बैठ जाना।
वाक्य : श्रीकंठ अपने भाई लालबिहारी के गलत व्यवहार करने पर भी खून का घूँट पीकार रह जाता है।
* पिंड छुडाना - पीछा छुड़ाना
वाक्य : लालबिहारी अपनी जिम्मेदारियों से पिंड छुड़ाना चाहता था।
* आँखें लाल होना - गुस्सा करना
वाक्य : लालबिहारी की अभद्र भाषा सुनकर आनंदी की आँखे लाल हो जाती है।
* तिलमिला उठना - बौखला जाना
वाक्य : बेनीमाधव आनंदी की ऊँची आवाज़ सुनकर तिलमिला उठा।
* उल्लू बनाना - मूर्ख बनाना
वाक्य - लालबिहारी ने बेनीमाधव को आनंदी के बारे गलत बातें बताकर उल्लू बनाया।
* गले लगाना - आलिंगन करना
वाक्य : श्रीकंठ ने लालबिहारी को गले लगाया।
* सिर झकाना- लज्जा से झुक जाना।
वाक्य : लालबिहारी का अपनी गलती का पता चलने पर शर्म के मारे सिर झुक गया।
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
१. ठाकुर साहब के कितने बेटे थे?
उतर : ठाकुर साहब के दो बेटे थे।
२. बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति किसे भेंट के रुप में दे चुके थे?
उतर : बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति वकीलों को भेंट के रुप में दे चुके थे।
उतर : ठाकुर साहब के बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ था।
४. श्रीकंठ कब घर आया करते थे?
उतर : श्रीकंठ शनिवार को घर आया करते थे।
५. आनंदी के पिता का नाम लिहिए।
उतर : आनंदी के पिता का नाम भूपसिंह था।
६. थाली उठकार किसने पलट दी?
उतर : थाली उठाकर लालबिहारी ने पलट दी।
७. गौरीपुर गाँव के जमींदार कौन थे?
उतर : गौरीपुर गाँव के जमींदार बेनीमाधव सिंह थे।
८. किसकी आँखें लाल हो गयी थीं?
उतर : श्रीकंठ की आँखें लाल हो गई।
९. बिगड़ता हुआ काम कौन बना लेती हैं?
उतर : बिगड़ता हुआ काम बड़े घर की बटियाँ बना लेती हैं।
१०. ‘बड़े घर की बटी’ इस कहानी के लेखक कौन हैं?
उतर : ‘बड़े घर की बटी’ कहानी के लेखक प्रेमचंद है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
१. बेनीमाधव सिंह के परिवार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उतर : बेनीमाधव गौरीपुर गाँव के जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पिता के समय यह परिवार धन-धान्य से भरा था। लेकिन आज इनकी उत्पन्न एक हजार रुपये से अधिक नहीं थी। इनके दो बेटे थे। बड़ा बेटा श्रीकंठ जो बीए की डिग्री प्राप्त कर चुका था और छोटा बेटा लालबिहारी जो अनपढ़ था। सभी एक-दूसरे से प्रेमभरा व्यवहार करते थे। श्रीकंठ की शादी रियासतदार भूपसिंह की बेटी आनंदी से होती है।
२. आनंंदी ने अपने ससुराल में क्या रंग-ढंग देखा था?
उतर : आनंदी एक रियासत के ताल्लुकेदार भूपसिंह की बेटी थी। वह उच्च कुल में पैदा होने के कारण सुख-सुविधाओं में पली-बड़ी थीं। लेकिन श्रीकंठ से विवाह होने के बाद उसे ससुराल में वह सबकुछ देखने नहीं मिला जो मायके में था। मायके में हाथी-घोड़े थे लेकिन यहाँ सुंदर बहली तक न थी। पिताजी के यहाँ रेशमी स्लीपर पहनकर बाग में घुमती थी। विवाह के बाद अपने साथ स्लीपर लायी थीं लेकिन यहाँ बाग ही नहीं थी। सीधा-सादा मकान था। उस मकान में खिड़कियाँ तक नहीं थीं, ना ही जमीन पर फ़र्श और ना ही दीवार पर कोई तस्वीरें थीं।
३. लालबिहारी आनंदी पर क्यों बिगड़ पड़ा?
उतर : लालबिहारी आनंदी पर बिगड़ पड़ा क्योंकि एक दिन वह दो चिड़ियाँ लेकर आता है और आनंदी को उनका मांस पकाने के लिए कहता है। आनंदी भोजन बनाने में लग जाती हैं। उसने घर में हाँड़ी में जितना पाव-भर घी था वह सब मांस में डाल दिया और दाल में डालने के लिए घी ही नहीं बचा। लालबिहारी दाल में घी न पाकर ऊँची आवाज़ में आनंदी के साथ बात करता है। खाने में अधिक घी डालने से सब घी खत्म हुआ यह आनंदी की बात सुनकर वह उसके मायके के लोगों की निंदा करता है। जिससे आनंदी भी उलटकर उसे जवाब देती है। उसका उलट जवाब सुनकर लालबिहारी गुस्से जल उठता है और खाने की थाली पलट देता है।