Surdas Ke Pad/PUC 2nd year(Sahitya Gaurav) Karnataka Board/Summary/Question & Answer (सूरदास के पद ...सारांश)
सूरदास के पद
सूरदास
कवि परिचय :
* सूरदास का जन्म 1483 में दिल्ली के पास सीही नामक गाँव में हुआ।
* सूरदास सगुण भक्तिधारा के प्रमुख कवियों में से एक हैं।
* सूरदास कृष्ण भगवान की भक्ति करते थे।
* सूरदास ने महाप्रभु वल्लभाचार्य से पुष्टिमार्ग की दीक्षा ली।
* सूरदास की भक्ति साख्य, वात्सल्य तथा माधुर्य भाव की है।
* सूरदास अष्टछाप के कवियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं।
* सूरदास के पदों की भाषा ब्रज है।
प्रमुख रचनाएँ : सूरसागर, साहित्य लहरी, सूरसारावली
पद :
1. ऊधौ हम आजु भईं बड़-भागी।
जिन अँखियन तुम स्याम बिलोके, ते अँखियाँ हम लागीं।
जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी।
अति आनंद होत है तैसैं, अंग-अंग सुख रागी।
ज्यों दरपन में दरस देखियत, दृष्टि परम रुचि लागी।
तैसैं सूर मिले हरि हमकौं, बिरह-बिथा तन त्यागी॥
भावार्थ : पहले पद में सूरदास ने गोपियों के विरह का वर्णन किया है। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! हम बहुत ही भाग्यशाली हैं कि आज जिन आँखों से आपने श्याम (कृष्ण) के दर्शन किए, उन आँखों में हम श्याम को देख रहे हैं। अर्थात उद्धव जब श्रीकृष्ण को मिलकर आते हैं तब श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल गोपियाँ उद्धव की आँखों में उनके दर्शन करती हैं। वे अपने आप को भाग्यशाली मानती हैं कि जिन आँखों ने उनके श्याम के दर्शन किए, वे उन आँखों में कृष्ण का प्रतिबिंब देख रही हैं। वे कह रही हैं कि जैसे हवा एक फ़ूल की खुशबू भौंरे (काला किड़ा जो फ़ूल के मधु को पीता है) के पास बहाकर लाती है, ठीक वैसे ही उद्धव कृष्ण रुपी सुगंध गोपिकाओं के पास लेकर आते हैं। उद्धव के आने से गोपिकाओं के रोम-रोम में आनंद की अनुभूति हो रही है। वे इस बात से बहुत प्रसन्न हैं। गोपियों को उद्धव की आँखें मानो दरपन के समान प्रतीत हो रही है और उस दरपन में वे कृष्ण का रुप देख रही हैं। सूरदास कह रहे हैं कि इस प्रकार हम सभी को हरि मिले और हमारे शरीर में जो विरह की पीड़ा थी वह मिट गई।
2. जमुना तट देखे नँद नंदन।
मोर-मुकुट मकराकृत-कुंडल,पीत बसन तन चंदन।
लोचन तृप्त भए दरसन तैं उर की तपनि बुझानी।
प्रेम-मगन तब भईं सुंदरी, उर गदगद, मुख बानी।
कमल-नयन तट पर हैं ठाढ़े, सकुचहिं मिलि ब्रज नारी।
सूरदास-प्रभु अंतरजामी, ब्रत-पूरन पगधारी॥
भावार्थ : दूसरे पद में सूरदास ने कृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन किया है। गोपियाँ कहती हैं कि यमुना नदी के तट (किनारे) पर नंद (कृष्ण के पिता) नंदन (बेटे) को देखा है। कृष्ण ने अपने माथे पर मोर पंख का मुकुट पहना है। उनके कानों में मछली के आकार के कुंडल हैं। उन्होंने अपने शरीर पर पीले वस्त्र पहने हैं तथा शरीर पर चंदन लेप लगा है। उन्हें इस सुंदर रुप में देखकर उनकी आँखें तृप्त हो गई हैं। उनके दर्शन से गोपियों के हृदय की विरह रुपी आग बुझ गई। श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न होकर इन सुंदरियों का हृदय प्रसन्न हुआ है। कमल के समान नयन वाले श्याम को नदी के किनारे खड़ा देखकर उनको मिलने के लिए ब्रज की नारियाँ संकोच कर रही हैं। सूरदास कहते हैं कि उनके प्रभु अंतर्यामी हैं। वे ब्रज की नारियों का दर्शन करने का व्रत पूरा करने के लिए स्वयं ही आगे बढ़ते हैं।
3. चोरी करत कान्ह धरि पाए।
निसि-बासर मोहिं बहुत सतायौ अब हरि अरि हाथहिं आए।
माखन-दधि मेरौ सब खायौ, बहुत अगचरी कीन्ही।
अब तो घात परे हौ लालन, तुम्हैं भलै मैं चीन्ही।
दौ भुज पकरि, कहयौ कहँ जैहाँ माखन लेउँ मँगाइ।
तेरी सौं मैं नेकुँ न खायौ, सखा गये सब खाइ।
मुख तन चितै, बिहँसि हरि दीन्हौ, रिस तब गई बुझाइ।
लियो स्याम उर लाइ ग्वालिनी, सूरदास बलि जाइ॥
भावार्थ : तीसरे पद में सूरदास ने कृष्ण के माखन चोरी प्रसंग को अत्यंत मार्मिक रुप से प्रस्तुत किया है। कृष्ण की बाल-लिलाओं का वर्णन करते हुए सूरदास कहते हैं कि कान्हा माखन चोर के नाम से भी जाना जाता है। एक बार ग्वालन कृष्ण को माखन चोरी करते समय पकड़ती है। वह कान्हा को कहती है कि तुमने मेरे घर में रात-दिन माखन चोरी करके बहुत सताया है लेकिन अब तुम चोरी करते हुए मेरे हाथ लगे हो। मैंने तुम्हेंअच्छी तरह से पहचान लिया है। ग्वालन कान्हा की दोनों भुजाओं को पकड़ते हुए कह रही है कि चोरी करके माखन खाने की बजाय माँगकर भी खा सकते थे। लेकिन खाने से भी ज्यादा माखन नीचे गिराकर नष्ट किया है। ग्वालन की इस बात पर कान्हा मासूम-सा चेहरा लेकर कहते हैं कि मैं तुम्हारी सौगंध खाकर कहता हूँ कि मैंने माखन नहीं खाया है बल्कि सब माखन मेरे सखा खाये हैं। कान्हा का यह मासूम-सा चेहरा देखकर ग्वालन का गुस्से से भरा मन तथा हृदय शांत हो जाता है। वह हँसते हुए कृष्ण को अपने गले लगा लेती है। सूरदास कृष्ण और ग्वालन के इस स्नेह भरे प्रसंग पर समर्पित भाव व्यक्त करते हैं।
प्रश्नोंत्तर :
I एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
1. अपने आप को कौन भाग्यशाली समझ रही हैं?
उत्तर- अपने आपको गोपियाँ भाग्यशाली समझ रही हैं।
2. गोपिकाएँ किसे संबोधित करते हुए बातें कर रही हैं?
उत्तर- गोपिकाएँ उद्धव को संबोधित करते हुए बातें कर रही हैं।
3. श्रीकृष्ण ने कान में किस आकार का कुंडल डाला है?
उत्तर- श्रीकृष्ण ने कान में मकराकृत (मछली के आकार का कुंडल) डाला है।
4. वाणी कहाँ रह गई?
उत्तर- वाणी मुख में दबकर रह गई।
5. कौन अंतर की बात जानने वाले हैं?
उत्तर- सूरदास के प्रभु( श्रीकृष्ण) अंतर की बात जानने वाले हैं।
6. श्रीकृष्ण के अनुसार किसने सब माखन खा लिया?
उत्तर- श्रीकृष्ण के अनुसार उनके सखाओं ने सब माखन खा लिया।
7. सूरदास किसकी शोभा पर बलि जाते हैं?
उत्तर- सूरदास श्रीकृष्ण की शोभा पर बलि जाते हैं।
II निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
1. गोपिकाएँ अपने आपको भाग्यशाली क्यों समझ रही हैं?
उत्तर- गोपिकाएँ अपने आपको भाग्यशाली समझ रही हैं क्योंकि उद्धव की जिन आँखों ने श्रीकृष्ण के दर्शन किए थे, उन्हीं आँखों में उनको श्रीकृष्ण के दर्शन करने का मौका प्राप्त हुआ है। फ़ूल की सुगंध हवा भँवरे के पास ले जाने पर भँवरा जैसे उस फ़ूल की तरफ़ आकर्षित होता है, ठीक वैसे ही उद्धव की आँखों में कृष्ण की छाया देखकर गोपियाँ खुश हुई हैं। दरपन के समान कृष्ण के दरशन कराने वाले इन आँखों की दृष्टि उनको रुचिपूर्ण लग रही है। कृष्ण के दरशन पाकर इनके तन की पीड़ा खत्म हुई इसलिए वे अपने आपको भाग्यशाली समझ रही हैं।
2. श्रीकृष्ण के रुप सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर- सूरदास श्रीकृष्ण के रुप सौंदर्य का वर्णन करते हैं कि श्रीकृष्ण के माथे पर मोर पंख का मुकुट शुशोभित हो रहा है। उनके कानों में मकाराकृत कुंडल हैं। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र शुशोभित लग रहे हैं। उनके शरीर पर चंदन का लेप लगा हुआ है।
3. सूरदास ने माखन चोरी प्रसंग का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर- सूरदास माखन चोरी प्रसंग का वर्णन करते हैं कि ग्वालन ने कृष्ण को माखन चोरी करते समय अपने हाथों से पकड़ा। ग्वालन कृष्ण के दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहती हैं कि श्याम तुने मुझे बहुत सताया है। तुने मेरे माखन का बहुत नुकसान किया है। मैं तुम्हारी माँ से माखन माँगकर लूँगी। इसपर कृष्ण ग्वालन को कहते हैं कि “मैं तुम्हारी सौंगंध खाकर कहता हूँ कि मैंने माखन नहीं खाया है। सारा माखन सखा खा गए। कृष्ण का मासूम-सा चेहरा देखकर उसका गुस्सा शांत हो जाता है और वह उसे गले लगा लेती हैं।
III ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
1. ऊधौ हम आजु भईं बड़-भागी।
जिन अँखियन तुम स्याम बिलोके, ते अँखियाँ हम लागीं।
जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी।
अति आनंद होत है तैसैं, अंग-अंग सुख रागी।
प्रसंग : यह पद कक्षा १२ वीं के ‘साहित्य गौरव’ पुस्तक के मध्यकालिन कविता भाग के ‘सूरदास के पद’ में से लिया गया है।
संदर्भ : सूरदास ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपिकाओं का समर्पण, तथा प्रेम भाव का वर्णन करते हुए कृष्ण भक्ति और प्रेम रुपी शक्ति का महत्व समझाया है।
भाव स्पष्टिकरण : सूरदास ने इस पद में गोपिकाओं का श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण भाव दिखाया है कि हे उद्धव ! हम बहुत ही भाग्यशाली है कि आपकी आँखों में हम हमारे श्याम के दर्शन कर पा रही हैं। आप हमारे लिए उस पवन की तरह हैं जो सुमन की खशबू भँवरे तक पहुँचाने का काम करती है। वैसे ही आपकी आँखें भी हमें श्रीकृष्ण को मिला रही हैं। हमें कृष्ण के दरशन आपकी आँखों में करके अत्यधिक आनंद हो रहा है। हमारा रोम-रोम इससे सुख की अनुभूति कर रहा है।