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Raheem ke Dohe/PUC 2nd year (Sahitya Gaurav) Karnataka Board/Summary/Question & Answer ( रहीम के दोहे...सारांश)

                                                                             रहीम के दोहे

                                                                                      रहीम

कवि परिचय :

* रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना है।

* उनका जन्म 16 वीं शताब्दी में हुआ।

* मृत्यु 17 वीं शताब्दी में हुई।

* पिताजी का नाम बैरमखाँ खानखाना ।

* रहीम मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे।

* अकबर के मंत्री और सेनापति थे।


प्रमुख रचनाएँ :

       * रहीम दोहावली,

       * बरवै नायिका भेद

       * मदनाष्टक 

       * गार सोरठ


दोहे व भावार्थ :

1. रहिमन विद्या बुद्धि नहिं, नहीं धरम, जस, दान।

    भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिनु पूँछ बिषान ॥1॥

भावार्थ : रहीम जी उपर्युक्त दोहे के द्वारा कहना चाहते हैं कि जिस व्यक्ति के पास विद्या और बुद्धि नहीं उसका जन्म लेकर भी बेकार है। जो मनुष्य धर्म के रास्ते नहीं चलता है, जिसे जीवन में यश प्राप्त नहीं हुआ है तथा जो दान नहीं करता है ऐसे व्यक्ति का धरती पर जन्म होकर भी व्यर्थ है। ऐसे व्यक्ति का जीवन उस पशु के समान है जिसको सींग और पूँछ नहीं होती है। रहीम जी का तात्पर्य यही है कि मनुष्य को अपनी बुद्धि के बल पर यश प्राप्त करते हुए जीवन में सम्मान प्राप्त करना है। अगर वह सम्मान का जीवन प्राप्त नहीं करता है तो उसको कोई महत्व नहीं है।

2. रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

     पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥2॥

भावार्थ : रहीम जी उपर्युक्त दोहे के द्वारा पानी शब्द का अलग-अलग चीजों के संदर्भ में अलग-अलग अर्थ बताते हुए समझाना चाहते हैं कि मनुष्य के पास पानी होना अत्यंत आवश्यक है। बिना पानी के सब कुछ सूना है। मोती के लिए पानी का अर्थ- चमक। मोती की अगर चमक नहीं है तो मोती का कोई मूल्य नहीं है। मोती की कीमत उसकी चमक के कारण होती है। मनुष्य के लिए पानी का अर्थ है- सम्मान। मनुष्य के जीवन में सम्मान नहीं है तो उसका जीवन अर्थशून्य है। बिना सम्मान तथा प्रतिष्ठा के आपके जीवन को कोई महत्व नहीं है। चून के लिए पानी का अर्थ है- जल। बिना जल के आटे की रोटी नहीं बन सकती है। आटे में जब पानी मिलाया जाता है तभी उसकी रोटी बनती है। बिना पानी के आटे का भी कोई महत्व नहीं है। 

3. रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।

     चिता दहती निर्जीव को, चिंता जीव समेत ॥3॥

भावार्थ : रहीम जी उपर्युक्त दोहे के माध्यम से समझाते हैं कि चिता से भी भयानक है- चिंता। चिता मरे हुए मनुष्य को जलाती है लेकिन चिंता मनुष्य को जीते जी जलाती है। इसलिए मनुष्य के जीवन में कोई भी कठिन प्रसंग आए, बिना चिंता किए हिम्मत और धैर्य से उसका सामना करना चाहिए। अगर मनुष्य को चिता से दूर रहना है तो उसे चिंता से दूर रहना पडेगा क्योंकि चिता निर्जीव को जलाती है और चिंता जीव को।

4. निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ।

     पाँसे अपने हाथ में, दाँव न अपने हाथ ॥3॥

भावार्थ : रहीम जी उपर्युक्त दोहे के माध्यम से कहते हैं कि मनुष्य को बिना फ़ल की अपेक्षा किए अपने कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि फ़ल भाग्य या भगवान के हाथ में होता है। बिना कर्म किए सिर्फ़ फ़ल की चिंता करने से फ़ल नहीं मिलता है। पाँसे फ़ेंकना मतलब प्रयत्न करना। पाँसे फ़ेंकना अपने हाथ में होता है लेकिन दाँव अपने हाथ में नहीं होता है। 

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

1. बुद्धिमान मनुष्य किसके समान है?

उत्तर- बुद्धिमान मनुष्य बिना पूँछ और सींग के समान है।

2. किसके बिना मनुष्य का अस्तित्व व्यर्थ है?

उत्तर- पानी (मान-सम्मान) के बिना मनुष्य का अस्तित्व व्यर्थ है।

3. चिता किसे जलाती है?

उत्तर- चिता निर्जीव को जलाती है।

4. कर्म का फ़ल देने वाला कौन है?

उत्तर- ईश्वर (भगवान) कर्म का फ़ल देने वाला है।

5. प्रेम की गली कैसी है?

उत्तर- प्रेम की गली साँकरी (संकुचित) है।

6. रहीम किसे बावरी कहते हैं?

उत्तर- रहीम जीभ को बावरी कहते हैं।

8.  रहीम किसे धन्य मानते हैं?

उत्तर- रहीम पंक जल को धन्य मानते हैं।


II निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

1. रहीम जी ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के संबंध में क्या कहा है?

उत्तर- रहीम जी मनुष्य का जीवन बिना प्रतिष्ठा के व्यर्थ मानते हैं। जिस मनुष्य के पास ज्ञान नहीं या जो मनुष्य धर्म के रास्ते पर नहीं चलता। उसे समाज में कोई मान-सम्मान या प्रतिष्ठा नहीं देता है। वे उसका जीवन बिना पूँछ और सींग के पशु के समान मानते हैं। साथ ही मनुष्य के जीवन में पानी का भी महत्व है। मनुष्य को अपने जीवन में पानी रखना है मतलब इज्जत या मान-सम्मान। मनुष्य को बिना प्रतिष्ठा के समाज में कोई महत्व नहीं है। 

2. रहीम जी ने चिता और चिंता के अंतर को कैसे समझाया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- रहीम जी चिता और चिंता के बारे में कहते हैं कि चिता से भी भयंकर चिंता होती है इसलिए मनुष्य को जीवन में चिंता नहीं करनी चाहिए। चिता मनुष्य को मरने के बाद जलाती है तो चिंता मनुष्य को जीवित रहते हुए जलाती है। जो मनूष्य चिंता करता है वह अंदर ही अंदर टुटता और खत्म होता रहता है। एक मनुष्य को जल्दी चिता तक ले जाने का काम चिंता ही करती है इसलिए  मनुष्य किसी भी दुविधा में हो लेकिन उसे कभी भी चिंता नहीं करनी चाहिए।

3. कर्मयोग के स्वरुप के बारे में रहीम के क्या विचार हैं?

उत्तर- रहीम कर्मयोग के बारे में कहते हैं कि मनुष्य को कर्म करते रहना है, फ़ल की अपेक्षा नहीं करनी है। क्योंकि कर्म मनुष्य के हाथ में होता है लेकिन फ़ल देना या न देना भाग्य या भगवान के हाथ में होता है।  मनुष्य के हाथ में सिर्फ़ पाँसा फ़ेंकना है, दाँव उसके अपने हाथ में नहीं है। इसलिए मनुष्य को बिना फ़ल की चिंता करे कर्म करते रहना चाहिए। फ़ल दूसरी शक्ति पर निर्भर करता है। 

4. अहंकार के संबंध में रहीम के विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर- रहीम अहंकार के बारे में कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति यह सोच बैठता है कि उसके पास सबकुछ है तो उसके मन में अहंकार का निर्माण होता है। और जिस व्यक्ति के मन में अहंकार निर्माण होता है, उसे हरि की प्राप्ति नहीं हो सकती। अगर आपको हरी की प्राप्ति करनी है तो मन से अहंकार को निकाल फ़ेंकना होगा।  हरि और अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं। इसलिए कबीर कहते हैं कि अहंकार को त्यागने से ही आपके जीवन में हरि आ सकते हैं और आपका जीवन सुखमय बन सकता है।

5. वाणी को क्यों संयत रखना चाहिए?

उत्तर- रहीम वाणी का प्रयोग सँभालकर करने के लिए कहते हैं। मनुष्य को अपनी जीभ को नियंत्रित रखना चाहिए। अगर जीभ जरुरत से ज़्यादा चलने लगी तो उसका नुकसान अन्य शरीर के अवयवों को सहना पड़ सकता है। जीभ तो मुँह के भीतर रहेगी लेकिन जूते की मार सिर या कपाल को खानी पड़ स्काती है। इसलिए किसी भी प्रसंग में जीभ या वाणी का प्रयोग सँभालकर करना चाहिए।

6. भगवान की अनन्य भक्ति के बारे में रहीम क्या कहते हैं?

उत्तर- रहीम भगवान की भक्ति के बारे में कहते हैं कि जो भगवान की सच्चे मन से पूजा करेगा उसका जीवन हर एक मुसिबत से पार हो जाएगा। जैसे हमें पेड़ से फ़ल-फ़ूल चाहिए तो हमें फ़ल-फ़ूल को ही सिर्फ़ पानी नहीं डालना चाहिए बल्कि उसकी जड़ को पानी डालना चाहिए। वैसे ही हमें जिंदगी में सुख चाहिए तो इस दुनिया के निर्माता को ही प्राप्त्र करना चाहिए औए उसके लिए निस्वार्थ भाव से भगवान की अनन्य भक्ति करना आवश्यक है। 

III ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :

1.  रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

    पानी गए न ऊबरै मोती, मानुष, चून॥

प्रसंग : यह दोहा कक्षा १२ वीं के ‘साहित्य गौरव’ पुस्तक के मध्यकालिन कविता भाग के ‘रहीम के दोहे’ में से लिया गया है। 

संदर्भ : रहीम मनुष्य के जीवन में मान-सम्मान तथा प्रतिष्ठा का विशेष महत्व इस दोहे के माध्यम से समझाते हैं।

भाव स्पष्टिकरण : रहीम ने पानी का अलग-अलग चीजों के लिए अलग-अलग अर्थ में प्रयोग करते हुए समझाने का प्रयास किया है कि पानी के बिना सबकुछ सुना है। उन्होंने मोती के लिए पानी का अर्थ चमक बताया है। बिना चमक के मोती का कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य के लिए पानी का अर्थ है- प्रतिष्ठा या मान-सम्मान। जिस मनुष्य के जीवन में सम्मान नहीं होता है, उसका जीवन अर्थशून्य है। और चून (आटा) के लिए पानी का अर्थ है- पानी/जल। बिना पानी के आटे की रोटी नहीं बन सकती है। आटे का महत्व भी तभी रहेगा जब आटे की रोटी बनेगी और वह रोटी किसी की भूख मिटाएगी। रहीम ने इन तीनों उदाहरणों से पानी का महत्व समझाया है।


1. धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय ।

     उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥

प्रसंग : यह दोहा कक्षा १२ वीं के ‘साहित्य गौरव’ पुस्तक के मध्यकालिन कविता भाग के ‘रहीम के दोहे’ में से लिया गया है। 

संदर्भ : समुद्र का पानी स्वच्छ, निर्मल तथा विशाल रुप से फ़ैला होकर भी पंकजल की तुलना में कम महत्व प्राप्त करता है वैसे ही धनी मनुष्य का जीवन है।

भाव स्पष्टिकरण : रहीम ने धनी मनुष्य की तुलना समुद्र जल के साथ की है। समुद्र का जल निर्मल और स्वच्छ होता है, फ़िर भी वह खारा होने के कारण छोटे-छोटे जीवों की प्यास तक नहीं बुझा सकता। उसकी तुलना में रहीम ने पंक जल को धन्य माना है क्योंकि वह गंदा तथा कम होने के बावजूद भी कम से कम छोटे-छोटे जीवों की प्यास तो बुझात है। वैसे ही धनी मनुष्य अगर अधिक धन होने के बावजूद भी उसका उपयोग किसी की मदद करने के लिए नहीं करता है, तो उसका धनी होना बेकार है। उसकी तुलना में वह गरीब मनुष्य अच्छा है।










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