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Meerabai ke Pad/PUC-1st year/Sahitya vaibhav /Karnataka state board/ Summary/ Question & Answer (मीराबाई के पद सरल भावार्थ )

                                                                 मीराबाई के पद

                                                                                    मीराबाई

कवयित्री परिचय : 

* मीराबाई का जन्म सन 1498 में राजस्थान के मेड़ता के पास कुड़की में हुआ था।

* मीराबाई का विवाह उदयपुर के राजकुमार भोजराज के साथ हुआ।

* पिता जोधपुर के महाराजा राव रत्नसिंह 

* सगुण भक्तिधारा के कृष्ण भक्तिधारा की संत कवयित्री

* भाषा- राजस्थानी, गुजराती और ब्रज

* मृत्यु  सन 1546 में हुई।

प्रमुख रचनाएँ :

* गीत गोविंद की टीका

* नरसी जी रे माहेरो

* राग-गोविंद

* सोरठ संग्रह

* मीरा की पदावली


पद व भावार्थ :

१) म्हांरां री गिरधर गोपाल दूसरां न कूयां।

    दूसरां न कोवां साधां सकल लोक जूयां।

    भाया छांड्या बंधां छांड्या सगां सूयां।

    साधां संग बैठ बैठ लोक लाज खूंया।

    भगत देख्यां राजी ह्ययां जगत देख्यां रुयां।

    असवां जल सींच सींच प्रेम बेल बूयां।

    राणा विषरो प्याला भेज्यां  पीय मगन हूयां।

    अब तो बात फ़ैल पड्या जागणं सब कूयां।

    मीरां री लगन लग्यां होना होजू हूँया।

भावार्थ : मीराबाई उपर्युक्त पद के माध्यम से अपने जीवन की दयनीय अवस्था का परिचय कराती हैं। वे कहती हैं कि मेरा इस दुनिया में गिरधर गोपाल मतलब कृष्ण भगवान के शिवाय दूसरा कोई अपना नहीं है। मैंने पूरी दुनिया के लोगों को देखा लेकिन मुझे कोई भी अपना नहीं लगा। मैंने कॄष्ण के लिए भाई-बंधुओं को छोड़ा। मैं कृष्ण के लिए लोक लाज छोड़कर साधु-संतों के बीच में बैठकर भजन-किर्तन करने लगी। मैं कृष्ण के भक्तों को देखती तो प्रसन्न होती थी और दुनिया के लोगों को देखकर दु:खी होती थी। मैंने आँसु रुपी जलकर को सींचकर प्रेम की बेल को बोया है। मुझे संतों के बीच में बैठकर भजन-किर्तन करता देख मेरे परिवार वालों ने मुझे कुल का विनाश करने वाली कहकर जान से मारने का प्रयास किया। मेरे देवर राणा ने मुझे मारने के लिए विष का प्याला भेजा जिसे पीकर कृष्ण की भक्ति में मग्न हुई। अब तो सारी दुनिया को ही पता चला है कि मैं कृष्ण की हुई हूँ तो अब जो होना है होने दो। मुझे अब शिवाय कृष्ण की भक्ति के अलावा कुछ भी नहीं दिखता।

२) भज मन चरण कंवल अविनासी ॥टेक॥

     जेताइ दीसां धरनि गगन मां ते ताईं उठि जासी।

    तीरथ बरतां ग्यांन कथन्तां कहा लयां करवत कासी।

    या देही रो गरब ना करना माटी मा मिल जासी।

    यो संसार चहर री बाजी साँझ पड्या उठ जासी।

    कहा भयां था भगवां पहरया, घर तज लयां संन्यासी।

    जोगी होय जुगत ना जाना उलट जनम रां फ़ाँसी।

    अरज करुंस अबला स्याम तुम्हारी दासी।

    मीरां रे प्रभु गिरधर नागर कांट्या म्हांरी गांसी॥

भावार्थ- मीराबाई उपर्युक्त पद के माध्यम से संसार की नश्वरता और प्रभु भक्ति का वर्णन करती हैं। वे कहती हैं कि हे मन! तू कृष्ण को भजने का काम कर। मतलब मन में सतत कमल के समान चरण वाले तथा कभी न विनाश होने वाले प्रभु का नामस्मरण कर। वे कहती हैं कि प्रभु के अलावा धरती से लेकर आसमान तक जो भी दिखाई देता है, वह सब नश्वर या उठ/नष्ट हो जाने वाला है। तीर्थयात्रा करना, व्रत करना ज्ञान या कथा करना यह सब व्यर्थ की बातें हैं। काशी की तीर्थयात्रा करने से भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती। वे कहती हैं कि इस शरीर पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शरीर एक न एक दिन मिट्ठी में मिल जाने वाला है। यह संसार चिड़ियों का खेल हैं जो सायंकाल होते ही उड़ जाता है।  वे कहती हैं कि प्रभु को पाने के लिए भगवे वस्त्र पहनने या घर त्यागकर संन्यासी बनने से कोई फ़ायदा नहीं होगा। भगवान को पाने के लिए योगी बनकर ऐसी युक्ति जाननी चाहिए कि प्रभु दर्शन इस जन्म में हो वरना प्रभु के दर्शन पाने के लिए पुन: एक बार जन्म-मृत्यु के फ़ेरे में फ़ँसना होगा। मीराबाई पद के अंत कहती हैं कि हे शाम! आपकी यह अबला (निर्बल) दासी आपसे विनती करती हैं। हे! मीरा के प्रभु गिरधर नागर आप मुझे इन बंधनों से मुक्त कर दो। मुझे इस भौतिक जीवन से मुक्ति दिला दो। 


I  एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

१) मीराबाई ने किसे अपना आराध्य माना?

उत्तर- मीराबाई ने श्रीकृष्ण भगवान को अपना आराध्य माना।

२) मीराबाई ने किसके लिए सारा जग छोड़ा?

उत्तर- मीराबाई ने अपने प्रभु कृष्ण के लिए सारा जग छोड़ा।

३) मीराबाई ने किसकी संगति में बैठकर लोक-लाज छोड़ा?

उत्तर- मीराबाई ने साधुओं की संगति में बैठकर लोक लाज छोड़ी।

४) मीराबाई ने कृष्ण प्रेम को किससे सींचा?

उत्तर- मीराबाई ने कृष्ण प्रेम को आँसुओं के जल से सींचा।

५) विष का प्याला किसन्मे भेजा था?

उत्तर- मीराबाई को मारने के लिए विष का प्याला उसके देवर राना ने भेजा था।

६) मीराबाई की लगन किसमें लगी है?

उत्तर- मीराबाई की लगन कृष्ण की भक्ति में लगी हुई है।

७) श्रीकृष्ण के चरणकमल कैसे हैं?

उत्तर- श्रीकृष्ण के चरणकमल कभी नाश न होनेवाले हैं।

८) किसका घमंड नहीं करना चाहिए?

उत्तर- देह या शरीर का घमंड नहीं करना चाहिए। 

९) यह संसार किसका खेल है?

उत्तर- यह संसार चीड़ियों का खेल है।

१०) मीराबाई किन बंधनों को नष्ट करने के लिए प्रार्थना करती हैं?

उत्तर- मीराबाई सांसारिक बंधनों को नष्ट करने की प्रार्थना करती हैं।


II निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

१) मीराबाई की कृष्णभक्ति का वर्णन कीजिए।

उत्तर- मीराबाई सगुण भक्तिधारा के अंतर्गत कृष्णभक्ति शाखा की संत कवयित्री हैं। उन्होंने गोपीवल्लभ श्रीकृष्ण की भक्ति की। उनकी भक्ति में दैन्य और माधुर्य भाव देखने को मिलता है। मीराबाई श्रीकृष्ण को ही अपना प्रियतम, सखा, प्रभु तथा पति मानती हैं। उनके शिवाय वे अन्य किसीको अपना नहीं मानती हैं। वे कृष्ण के लिए अपना घर-परिवार त्यागकर वॄंदावन में जाकर संतों की बीच भजन-किर्तन करने लगी।

२) मीराबाई ने जीवन के सार तत्व को कैसे अपना लिया?

उत्तर- जीवन का सार तत्व मतलब इस दुनिया का आरंभ या मूल तत्व। जिनकी कृपा से ये जीवन है ऐसे कृष्ण भगवान को अपनाना। मीराबाई ने धर्म और भक्ति की राह पर चलकर सार तत्व अपना लिया है। मीराबाई ने कोई तीर्थयात्रा, व्रत और उपवास किए बिना कभी न नाश होने वाले तथा जीवन का सार जिनसे जुड़ा है ऐसे कृष्ण के चरणों में रहकर अपना जीवन सफ़ल बनाया।

३) मीराबाई  ने जीवन की नश्वरता के बारे में क्या कहा है?

उत्तर- मीराबाई सांसारिक जीवन से मुक्ति पाना चाहती है इसलिए वह बार-बार कृष्ण भगवान से विनती करती है कि वे इन्हें अपने साथ ले चलने की बात करती हैं। उनका मानना है कि यह शरीर नश्वर है। यह संसार चीड़ियों का खेल है जो शाम होते ही उड़ जाता है। इस शरीर को एक न एक दिन मिट्टी में मिलना है इसलिए इस पर घमंड न करते हुए कृष्ण भक्ति में मन लगाकर अपना जीवन उनके चरणों में समर्पित करना चाहती है। उनको इस दुनिया या जीवन से सिर्फ़ प्रताड़ना के अलावा कुछ नहीं मिला इसलिए इस भौतिक जगत से छुटकारा पाने की आस मन लिए वृंदावन में जाकर भजन-किर्तन में मना लगाती है।

 ) मीराबाई सांसारिक बंधन से क्यों मुक्ति चाहती हैं ?

उत्तर- मीराबाई सांसारिक दुनिया से ऊब गई हैं जिससे वे सांसारिक बंधनों से मुक्ति पाना चाहती हैं। बचपन में ही माँ की ममता का साया दूर चला गया। शादी के बाद पति, श्वसुर और पिता का देहांत होने बाद उनका मन इस सांसारिक जगत को छोड़ना चाहता था। उनके ही परिवार वाले उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। देवर राना ने उन्हें मारने के लिए दिया विष उनको परिवार से अलग करता है। सांसारिक जीवन से दु:ख और पीड़ा के अलावा कुछ भी नशीब नही हुआ। इसलिए वे कृष्ण भगवान से विनती करती हैं कि वे उन्हें इस सांसारिक जगत से मुक्ति दिला दें।

III ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :

१) म्हांरां री गिरधर गोपाल दूसरां न कूयां।

    दूसरां न कोवां साधां सकल लोक जूयां।

    भाया छांड्या बंधां छांड्या सगां सूयां।

    साधां संग बैठ बैठ लोक लाज खूंया।

    भगत देख्यां राजी ह्ययां जगत देख्यां रुयां।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा कक्षा ११ वीं की पाठ्यपुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के मध्ययुगीन काव्य के ‘मीराबाई के पद’ से लिया गया है।

संदर्भ : मीराबाई कृष्ण को ही अपना सबकुछ मानती हैं।  कृष्ण के लिए सबको छोड़कर साधु-संतों के बीच भजन किर्तन में बैठ जाती हैं।

भाव स्पष्टिकरण : मीराबाई अपनों के द्वारा हुए अनाचार से राज-परिवार त्यागकर वृंदावन में बस जाती है क्योंकि उसका भौतिक जगत से मन ऊब गया था। वे कहती हैं कि इस दुनिया में गिरधर गोपाल के अलावा मेरा दूसरा कोई नहीं है। मैंने उनके लिए भाई-बंधुओं को छो़ड़ा और संतों के बीच बैठकर लोक लाज खोते हुए भजन किर्तन करते बैठी। जीवन से ऊबी मीराबाई कृष्ण भक्ति में लीन हुए भक्तों को देखकर खुश होती और दुनिया वालों को देखकर रोती हैं। मीराबाई के इन पदों में उनके दैन्य भाव का परिचय होता है। 




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