Kabeer Das Ke Dohe /PUC-1st year/Sahitya vaibhav /Karnataka state board/ Summary/ Question & Answer (कबीरदास के दोहे सरल भावार्थ )
कबीरदास के दोहे
कवि परिचय -
* कबीरदास का जन्म काशी में 1399 में हुआ।
* कबीर निर्गुण भक्तिधारा के मुख्य संत कवि है।
* पालन पोषण करने वाले माता-पिता - नीरु एवं नीमा
* जन्मदेनेवाली माता - विधवा ब्राह्मणी
* विधवा ब्राह्मणी ने लोकलाज के कारण कबीर का जन्म होते ही लहरतारा तालाब की सीढ़ियों पर छो़ड़ा।
* कबीर अनपढ़ एवं क्रांतदर्शी कवि थे।
* उनके शिष्यों ने उनके दोहे लिखे और संग्रहित करके रखें।
* कबीर की भाषा सधुक्कड़ी तथा पंचमेल खिचड़ी थी, जिसमें पाँच भाषाओं का मिश्रण देखने मिलता है।
* कबीर के गुरु का नाम रामानंद था।
* कबीर की मृत्यु मगहर में 1518 में हुई।
दोहे व भावार्थ
1) सदगुरु के परताप तैं मिटि गया सब दु:ख दर्द।
कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद॥
भावार्थ- कबीरदास उपर्युक्त दोहे द्वारा गुरु की महानता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सदगुरु मतलब अच्छे गुरु के मार्गदर्शन से उनकी जिंदगी का दु:ख और दर्द दोनों मिट गया। कबीर कहते हैं कि उनकी सारी दुविधा मिट गयी, जब उन्हें गुरु रामानंद मिलें। अर्थात कबीर को भगवान की प्राप्ति न होने से वे बहुत दुखी रहते थे। उनको राम के बिना निंद नहीं आती थी। लेकिन उनके गुरु ने उनको भगवान से परिचित करवाया इसलिए उनकी सारी दुविधा गुरु के कारण मिट गई।
2) गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पायँ।
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय॥
भावार्थ- कबीरदास इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि गुरु और गोविंद (भगवान/राम) दोनों उनके सामने खड़े हैं। ऐसे में कबीरदास को समझ नहीं आ रहा है कि पहले किनके पैरों को छुए? इस स्थिति में कबीरदास पहले अपने गुरू पर बलिहारी (न्योछावर) होते हैं मतलब पैरों को छुना चाहते हैं क्योंकि उनके कारण ही वे भगवान को समझ तथा जान पाएँ। उनके गुरू ने ही उनको भगवान के दर्शन कराए इसलिए भगवान से भी वे अपने गुरू को श्रेष्ठ मानते हैं।
3) माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसो होयगो, मैं रौंदुँगी तोय॥
भावार्थ- कबीरदास इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि मिट्ठी से बरतन बनाने वाला कुम्हार जब मिट्ठी को मुलायम करने के लिए उसे अपने पैरों तले कुचलता है। मिट्ठी उस कुम्हार को इसपर कहती है कि तू क्या मुझे रौंदेगा एक दिन मैं ही तुझे रौंदुँगी। अर्थात हमें मिट्ठी तथा इस धरती को नुकसान नहीं पहुँचाना है। नहीं तो एक दिन ऐसा आयेगा हम ही मिट्ठी में मिल जाएँगे।
4) निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय।
बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करै सुभाय॥
भावार्थ- कबीर इस दोहे के माध्यम से हमें सुझाव देते हैं कि हमें निंदक को पास रखना चाहिए। उसे अपने घर के आँगन में कुटिया बनाकर देनी चाहिए। जिससे वह बिना पानी और साबन के हमारा स्वभाव निर्मल करेगा। अर्थात निंदक हमारे स्वभाव को निर्मल करने का कार्य करता है। निंदक हमारी गलतियों को दिखाएगा और हम उन्हें सुधारने का प्रयास करेंगे। जैसे कपड़े की मैल को धोने के लिए साबन और पानी की आवश्यकता है ठीक वैसे ही मन को साफ़ करने के लिए निंदक की आवश्यकता है।
5) कस्तूरी कुंड़लि बसै, मृग ढूँढै बन मांहि।
ऐसे घटि-घटि राम हैं , दुनिया देखै नांहि॥
भावार्थ- कबीर इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ जो मृग (हिरन) की नाभि में रहता है। इसे प्राप्त करने के लिए हिरन पूरे वन में इसे ढूँढ़ती रहती है। वैसे ही भगवान (राम) कण-कण में समाये हुए हैं लेकिन दुनिया उन्हें देख नहीं पाती। अर्थात हिरन को यह पता नहीं कि जिस कस्तूरी को प्राप्त करने के लिए वह उसे पूरे वन में ढूँढ़ रही है, वह उसी की नाभी में है। ठीक वैसे ही मनुष्य को भी पता नहीं भगवान उसके अंतरमन में ही हैं लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए मंदिर, मस्जीद, गुरुद्वारे तथा चर्च जाते हैं।
6) बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम॥
भावार्थ- कबीर कहते हैं कि बहुत दिनों से वे राम की राह देख रहे हैं। उनके प्राण राम मिलन के लिए तरस रहे हैं और उनके मन को विश्राम नहीं मिल रहा है। अर्थात कबीर राम के दर्शन पाना चाहते हैं लेकिन उन्हें राम के दर्शन नहीं हो रहे हैं। राम प्राप्ति न होने से वे दुखी हैं और रो रहे हैं। उनका मन राम के लिए तरस रहा है जिससे मन को पलभर के लिए भी विश्राम नहीं मिल रहा है। अत: वे अपने प्रभु के मिलन की आस मन में रखे हुए इंतज़ार कर रहे हैं।
7) जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप।
जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहाँ छिमा तहँ आप॥
भावार्थ- कबीर कहते हैं कि जहाँ दया है, वहाँ धर्म है और जहाँ लोभ वहाँ पाप है। जहाँ क्रोध होता है वहाँ काल (मृत्यु) होता है और जहाँ क्षमा होती है, वहाँ भगवान होते हैं। अर्थात कोई किसी पीडित व्यक्ति या दुखी व्यक्ति पर दया करता है तो वह धर्म के रास्ते चल रहा होता है। वहीं कोई अगर लाभ (फ़ायदे) के बारे में सोचता है, तो वह पाप कर रहा होता है। कबीर सुझाव दे रहे हैं कि मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए क्योंकि क्रोध करने से हमें मृत्यु भी प्राप्त हो सकती है। क्रोध की जगह हम क्षमा करते हैं तो हमें भगवान की प्राप्ति हो सकती है।
8) काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगा, बहुरि करेगा कब्ब॥
भावार्थ- कबीर कहते हैं कि हमें कल का काम आज ही करना चाहिए और आज का काम अभी करना चाहिए क्योंकि एक पल में प्रलय हो सकता है जिससे दुबारा करने का मौका नहीं मिलेगा। अर्थात हमें जीवन में सफ़ल होना है या अपने मुकाम तक जल्दी पहुँचना है तो कोई भी काम करते समय हमें इंतज़ार न करते हुए उसे तुरंत करना चाहिए। अगर हम कोई भी काम करने में विलंब करते हैं तो उस काम को करने का मौका दुबारा प्राप्त नहीं होगा क्योंकि एक पल में सर्वनाश होता है जिससे काम समय पर न करने का पश्चाताप करना पड़ सकता है।
9) दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै, तो दु:ख काहे होय॥
भावार्थ- कबीर कहते हैं कि सभी दु:ख में भगवान का स्मरण करते हैं लेकिन सुख में कोई स्मरण नहीं करता। जो सुख में भी स्मरण करेगा उसे कभी दु:ख नहीं होगा। अर्थात हमें भगवान का नाम स्मरण सतत करते रहना चाहिए। लेकिन हम भगवान को सिर्फ़ दु:ख में याद करेंगे और सुख के समय याद नहीं करेंगे तो हम पर भगवान की कृपा कैसे बनी रहेगी। जो भगवान को सुख और दु:ख दोनों स्थीतियों में बराबर याद करता है, उसकी जिंदगी में कभी दु:ख ही नहीं होगा।
10) जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
भावार्थ- कबीर कहते हैं कि हमें साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसके ज्ञान को पूछना चाहिए। वैसे ही तलवार खरीदते समय हमें तलवार का मोल करना चाहिए ना कि म्यान का मोल करना चाहिए। अर्थात एक साधु की जाति या उसके बाहरी गुणों को नहीं देखना चाहिए बल्कि उसके ज्ञान को देखना है। उसका ज्ञान हमारे जीवन में महत्वपूर्ण होता है। वैसे ही किसी वस्तु या व्यक्ति के बाहरी गुणों को देखकर हमें उसका दर्ज़ा तय नहीं करना चाहिए। हमें उसके आंतरिक गुणों को देखना चाहिए।
प्रश्नोंत्तर
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
१. किसके प्रताप से सब दु:ख दर्द मिटते हैं?
उत्तर- सद्गुरु के प्रताप से सब दु:ख दर्द मिटते हैं।
२. कबीर के गुरु कौन थे?
उत्तर- कबीर के गुरु रामानंद थे।
३. कबीर किस पर बलिहारी होते हैं?
उत्तर- कबीर अपने गुरु पर बलिहारी होते हैं।
४. माटी कुम्हार से क्या कहती है?
उत्तर- माटी कुम्हार से कहती है, “तू क्या मुझेरौंदेगा।”
५. किसको पास रखना चाहिए?
उत्तर- निंदक को पास रखना चाहिए।
६. कस्तूरी कहाँ बसती है?
उत्तर- कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है जो हिरन की नाभी में बसती है।
७. कबीर किसकी राह देखते हैंं?
उत्तर- कबीर अपने प्रभु राम की राह देखते हैं।
८. क्रोध किसके समान है?
उत्तर- क्रोध काल (मृत्यु) के समान है।
९. दु:ख में मनुष्य क्या करता है?
उत्तर- दु:ख में मनुष्य भगवान का स्मरण करता है।
१०. कबीरदास के अनुसार किसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए?
उत्तर- कबीरदास के अनुसार साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
१. गुरु की महिमा के बारे में कबीर क्या कहते हैं?
उत्तर- कबीर गुरु की महिमा गाते हुए कहते हैं कि सद्गुरु के प्रताप से सब दु:ख और दर्द मिट जाता है। कबीर गुरु और भगवान में पहले गुरु के पैर छुने की बात करते हैं तथा गुरु को महान मानते हैं क्योंकि गुरु ही हमें भगवान का परिचय कराते हैं। वे रामानंद को अपना गुरु मानते हैं जिनसे उनको सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।
२. जीवन की नश्वरता के बारे में कबीर के क्या विचार हैं?
उत्तर- कबीर के जीवन की नश्वरता के बारे में विचार हैं कि जीवन नश्वर है। एक न एक दिन यह नश्वर शरीर माटी में मिलने वाला है इसलिए हमारे शरीर में जब तक प्राण हैं हमें भगवान का स्मरण करना है। हमें किसी भी बुरी संगत में फ़ँसना नहीं है। किसी को भी नुकसान पहुँचाने का काम नहीं करना चाहिए।
३. दया और धर्म के महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर- दया और धर्म एकदूसरे से संबंधित हैं। संकट या दु:ख में फ़ँसे हर एक पर आप दया करते हैं तो आप धर्म के रास्ते पर चल रहे हैं, ऐसा माना जाएगा। लेकिन आप दया की जगह क्रोध को अपने जीवन में स्थान देते हो तो आपको कभी-कभी मृत्यु को भी गले लगाना पड़ सकता है। दया यह गुण धर्म के रास्ते पर और धर्म भगवान के रास्ते पर ले जाता है। दया का रास्ता छोड़कर जो लाभ प्राप्त करने में लगता है, वह पाप करता है।
४. समय के सदुपयोग के बारे में कबीर क्या कहते हैं?
उत्तर- कबीर समय के सदुपयोग के बारे में कहते हैं कि हमें समय का पालन कठोरता से करना चाहिए। कोई भी काम करते समय उसे कल पर न ढ़केलते हुए आज ही करना चाहिए और आज का काम उसी वक्त करना चाहिए। अगर काम करने में विलंब करते हैं तो बाद में पश्चाताप करना पड़ सकता है क्योंकि समय का भरोसा नहीं है। एक पल में सर्वनाश हो सकता है।
५. कबीर के अनुसार ज्ञान का क्या महत्व है?
उत्तर- कबीर ने शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव ज्ञान को अधिक महत्व दिया है। ज्ञान प्राप्त करते समय हमें यह नहीं देखना चाहिए कि ज्ञान देने वाल कौन है? कैसा दिखता है? उसकी जाति कौन-सी है? तथा उसने कौन-सी पोशाक पहनी है? मतलब हमें ज्ञान देने वाले के बाहरी गुणों को नहीं देखना चाहिए। बल्कि उसके ज्ञान को देखना चाहिए। उसके द्वारा प्राप्त ज्ञान ही हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान करता है।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
१. माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसो होयगो, मैं रौंदुँगी तोय॥
प्रसंग : यह दोहा कक्षा ११ वीं के ‘साहित्य वैभव’ पुस्तक के मध्ययुगीन काव्य भाग के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है।
संदर्भ : कबीरदास उपर्युक्त दोहे से शरीर की नश्वरता का वर्णन माटी और कुम्हार का उदाहरण देकर समझाते हैं।
भाव स्पष्टिकरण : कबीरदास इस दोहे द्वारा कहना चाहते हैं कि कुम्हार जिस माटी को अपने पैरों तले कुचलकर उसके बरतन बनाने का काम करता है। उस कुम्हार को यह माटी कहना चाहती हो कि तू मुझे नहीं रौंद सकता बल्कि एक दिन ऐसा आएगा कि मैं ही तुझे रौंदने का काम करुँगी मतलब मिट्ठी में मिलाऊँगी।
२. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन मांहि।
ऐसे घटि-घटि राम हैं, दुनिया देखै नांहि॥
प्रसंग : यह दोहा कक्षा ११ वीं के ‘साहित्य वैभव’ पुस्तक के मध्ययुगीन काव्य भाग के ‘कबीरदास के दोहे’ से लिया गया है।
संदर्भ : कबीरदास उपर्युक्त दोहे के माध्यम से राम की सर्वव्यापकता का वर्णन करते हैं। इस संसार के कण-कण में भगवान है लेकिन अज्ञानता के कारण दुनिया उसे नहीं देख पाती।
भाव स्पष्टिकरण : कबीरदास इस दोहे द्वारा कहना चाहते हैं कि कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है जो हिरन की नाभि में रहता है। परंतु यह बात पता न होने से हिरन उसे पूरे वन में ढूँढ़ती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी भगवान को प्राप्त करने के लिए अपने-अपने पूजा स्थलों में जाकर उन्हें ढूँढ़ने का प्रयास करता है। भगवान हमारे अंतर्मन में बसे हैं लेकिन हम उन्हें नहीं ढूँढ़ पाते हैं।
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