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Kallu kumhar ki unakoti NCERT Class-9 Solutions (कल्लू कुम्हार की उनाकोटी CBSE Question & Answer Important)

                                                         कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

                                                                                            के. विक्रम सिंह

बोध-प्रश्न

1. ‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर- ‘उनाकोटी’ शब्द का अर्थ है- एक कोटी में एक कम। यह स्थान उनाकोटी के नाम से इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि कल्लू कुम्हार पार्वती का अनन्य भक्त था। उसे शिवजी और पार्वती के साथ कैलाश जाने के लिए इस एक रात में एक कोटी मूर्तियाँ बनानी थी लेकिन उसने उनाकोटी मतलब एक कोटी में एक कम ही मूर्तियाँ बनायीं। इन मूर्तियों की वजह स ही यह स्थान इस नाम से प्रसिद्ध है।

2. पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की  कथा को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- कल्लू कुम्हार की उनाकोटी पाठ में गंगावतरण की कथा का वर्णन किया है कि ऋषि भगिरथ की प्रार्थना से पृथ्वी के कल्याण हेतु गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हो रहा था। लेकिन गंगा के तेज़ प्रवाह से पृथ्वी धँसकर पाताल लोक में न चली जाए इसलिए शिव जी ने अपनी जटाओं में गंगा को उलझाकर धीरे-धीरे पृथ्वी पर लाने का कार्य किया था। 

3. कल्लू कुम्हार का नाम ‘उनाकोटी’ के साथ कैसे जुड़ गया? 

उत्तर- कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी के साथ जुड़ने के पीछे ऐसी दंतकथा है कि कल्लू कुम्हार पार्वती का अनन्य भक्त था। वह शिव जी और पार्वती के साथ कैलाश जाना जाना चाहता था।  शिवजी उसे साथ लेकर चलने के लिए एक शर्त रखते हैं कि उसे एक रात में शिव जी की एक कोटी मूर्तियाँ बनानी हैं। कल्लू ने यह शर्त मानते हुए मूर्तियाँ बनानी शुरु की लेकिन सुबह होने तक वह उनाकोटी मतलब एक कोटी में एक कम ही मूर्तियाँ बना पाया। मूर्तियों की वजह से इस स्थान का नाम उनाकोटी पड़ा और इन मूर्तियों का निर्माता होने के कारण कल्लू कुम्हार का नाम इस उनाकोटी के साथ जुड़ गया।

4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई’ लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है? 

उत्तर- लेखक और उनकी टीम त्रिपुरा के हिंसाग्रस्त भाग से अपनी टीवी शृंखला की शूटिंग करने के लिए  सी.आर.एफ़. की हथियारबंद गाड़ी में सफ़र कर रही थी। लेखक की सुरक्षा के लिए गाड़ी में बैठे सी.आर.एफ़. के एक जवान ने लेखक का ध्यान उस ओर ले जाते हुए कहा कि “दो दिन पहले इसी स्थान पर हमारा एक जवान विद्रोहियों द्वारा मार डाला गया था।” उस सुरक्षा कर्मी की बात को सुनने के बाद लेखक ने कथन किया कि ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई।’ इस कथन का तात्पर्य यही था कि वे इस घटना से बहुत ही डर गए थे।

5.  त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का उदाहरण कैसे बना? 

उत्तर-त्रिपुरा के अधिकतर महत्वपूर्ण शहर बांग्लादेश की सीमा के करीब हैं। जिसके चलते त्रिपुरा में बांग्लादेश से अनेक लोगों के अवैध तरीके की आवक से स्थानीय लोगों को अनेक समस्याओं से जुझना पड़ा लेकिन इसके चलते त्रिपुरा बहुधार्मिक समाज का उदाहरण भी बन गया। बाहरी लोगों को यहाँ सामाजिक स्वीकृति है इसलिए यहाँ असम  तथा पश्चिम बंगाल से भी लोगों का प्रवास होता है। ये बाहरी लोग ही यहाँ की असाधारण जनसंख्या वृद्धि के कारण बनने से स्थानीय अदिवासी असुरक्षित हो गए हैं।  त्रिपुरा में उन्नीस जनजातियों और चार बड़े धर्मों के लोग देखने मिलते हैं। 

6.  टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था?  

उत्तर -टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय प्रसिद्ध लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया और मंजु ऋषिदास से हुआ। हेमंतकुमार जमातिया कोकबारोक बोली के प्रसिद्ध लोकगायक थे, जिन्हें 1996 में नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया था। जवानी के दिनों में वे पीपुल्स लिबरेशन ऑफ़ ऑर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे लेकिन अब वे हथियार बंद रास्ता छोड़कर जिला परिषद के सदस्य बने थे। टिलियामुरा की एक और लोकगायिका मंजु ऋषिदास वॉर्ड नं. 3 का नेतृत्व कर रही थी। ये मोचियों के समुदाय से आती थी जो चमड़े के जूते बनाने के साथ वाद्यंयंत्रों की मरमत्त भी करते थे। मंजु ऋषिदास रेडियो कलाकार भी थी। एक निरक्षर महिला होने के साथ उन्होंने अपने वॉर्ड की सबसे बड़ी समस्या स्वच्छ पेयजल की आवश्यकता को पूरा किया था। उन्होंने अपने वॉर्ड में नल का पानी पहुँचाने और मुख्य गलियों में ईंटें बिछाने के लिए नगर पंचायत को तैयार किया था। 

7. कैलास शहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी? 

उत्तर-कैलास शहर के जिलाधिकारी केरल के एक नौजवान मिलनसार, तेज़तर्रार और उत्साही युवक थे। उन्होंने लेखक को आलू की खेती के बारे में जानकारी दी कि त्रिपुरा में आलू की बुआई पहले पारंपारिक रुप से होती थी। जिस कारण आलू के बीज़ की जरुरत प्रति हेक्टेयर दो मिट्रिक टन पड़ती थी। इसके अलावा टी.पी.एस. (टरु पोटेटो सीड्स) की प्रति हेक्टेयर के लिए सिर्फ़ 100 ग्राम मात्रा काफ़ी होती थी। उन्होंने  टी.पी.एस. का प्रयोग करने से बहुत बड़ी सफ़लता मिली। त्रिपुरा के टी.पी.एस. की निर्यात अब असम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के साथ बांग्लादेश, मलेशिया और विएतनाम को भी की जा रही है। जिलाधिकारी ने लेखक को मुराई गाँव में की जा रही टी.पी.एस. खेती को भी दिखाया । 

8. त्रिपुरा के कुछ घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय  में बताइए ? 

उत्तर- त्रिपुरा के कुछ घरेलू उद्योगों में से एक अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींके तैयार करना भी लोकप्रिय है क्योंकि यहाँ बाँस की खेती भी अधिक मात्रा में होती है। बाँस की इन सींकों को अगरबत्तियाँ बनाने के लिए कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है। अगरबत्तियों के लिए बाँस की सींके बनाने की तरह बहुत ही ऐसे उद्योग हैं जो गाँवों तथा शहरों में देखे जाते हैं। जैसे- बांस की सींकों से टोकरियाँ बनाना तथा इन्हीं बाँस की सींकों से बरसात से बचने के लिए उपकरण तैयार करना और पेड़ों के पत्तों से खाने के लिए पत्तल बनाना आदि। आज भी ऐसे बहुत से घरेलू उद्योग हैं जो अलग-अलग स्थानीय उपलब्ध प्राकृतिक साधनों से चलाएँ जाते हैं। 






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