दु:ख का अधिकार
यशपाल
लेखक का जीवन परिचय-
* जन्म - फ़िरोज़पुर छावनी में 1903 में हुआ।
* भगत सिंह के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में सहभाग
प्रमुख रचनाएँ -
* तेरी मेरी उसकी बात
* देश द्रोही
* पार्टी कामरेड तथा दादा कामरेड
* झूठा सच
* फ़ूलों का कुर्ता
* सिंहावलोकन
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर- किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें उसका दर्ज़ा तथा अधिकार का पता चलता है।
2. खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूज़े क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर- खरबूज़े बेचने वाली स्त्री से कोई भी खरबूज़े खरीद नहीं रहा था क्योंकि उसका जवान बेटा मरा था और उसके घर में तेरह दिन का सूतक था।
3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसे लगा?
उत्तर- लेखक ने उस स्त्री को फ़ुटपाथ पर रोते हुए देखा तो उसे बहुत बुरा लगा। वह उसके रोने का कारण जानना चाहता था लेकिन वह सफ़ेद पोशाक पहनने के कारण नहीं जा पाया।
4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर- खेत में से पके खरबूज़े तोड़ने के बाद थोड़े समय के लिए विश्राम करते समय भगवाना का पैर साँप पर पड़ गया और स्त्री के तेईस बरस के जवान लड़के की मृत्यु हो गई।
5. बुढ़िया को कोई भी उधार क्यों नहीं देता?
उत्तर- बुढ़िया को कोई भी उधार नहीं देता क्योंकि उसका कमाने वाला जवान बेटा मर गया था। ऐसे में कोई भी उसे उधार देता तो वह वापस न मिलने का डर रहता था।
लिखित
क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?
उत्तर- मनुष्य के जीवन में पोशाक बहुत ही महत्वपूर्ण है। मनुष्य जो पोशाक पहनता है उसी पर उसका समाज में दर्ज़ा तथा अधिकार निश्चित होता है। अगर आपने सफ़ेद पोशाक पहनी है तो समाज में ऊँची श्रेणी के लोगों में आपका स्थान और अधिकार निश्चित होता है। लेकिन आपकी पोशाक अच्छी नहीं है तो वह आपके लिए बंधन और अड़चन बन जाती है।
2. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर- पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है जब हम नीचली श्रेणी के लोगों की मदद करने के लिए थोड़ा-सा झुकने लगते हैं। अगर हमने सफ़ेद पोशाक पहनी है और हम समाज के नीचली श्रेणी के लोगों की मदद करने के लिए थोड़ा आगे आते हैं तो लोग हमारे बारे में गलत-गलत राय देते हैं। जिससे हमारे सम्मान और दर्ज़ा को ठेस पहुँच सकती है।
3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर- लेखक उस स्त्री के रोने का कारण नहीं जान पाया क्योंकि उसने सफ़ेद पोशाक पहनी थी। फ़ुटपाथ पर बैठी उस स्री के रोने के कारण को जानने के लिए वह आगे आता तो लोग उसके बारे में गलत-गलत बोलते। जिससे समाज में उसका दर्ज़ा और अधिकार अड़चन में आ जाता।
4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था ?
उत्तर- भगवाना अपने परिवार का निर्वाह शहर के पास अपनी डेढ़ बीघा जमीन में कछियारी करके करता था। वह अपनी जमीन में खरबूज़े उगाता और उन खरबूज़ों को कभी खुद तो कभी अपनी माँ को बाज़ार में बेचने के लिए भेज देता। उससे जो भी मिलता उसी से वह अपने परिवार का निर्वाह करता था।
5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने क्यों चली पड़ी?
उत्तर- भगवाना की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूज़े बेचने चल पड़ी क्योंकि भगवाना को बचाने व विदाई करने में घर में जो कुछ भी था खत्म हो गया था। ऐसे में बहू बुखार से तवे की तरह तप रही थी। उसका इलाज़ भी करवाना था। भगवाना के बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे उनकी भूख भी मिटानी थी।
6. बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर- बुढ़िया के दु:ख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आई। उसका भी जवान बेटा मर गया था। बेटे के मरने के बाद अढ़ाई मास तक वह पलंग पर पड़ी रही। पुत्र वियोग से मुर्छा आती थी और मुर्छा न आने पर आँखों से आँसू न रुकते। दो -दो डॉक्टर उसके सिरहाने इलाज के लिए बैठते रहते।
ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1. बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे?
उत्तर- बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचने वाली स्त्री के बारे में घृणा से तरह-तरह की बातें कर रहे थे-
एक आदामी ने घृणा से थूकते हुए कहा,“ क्या जमाना है? जवान बेटे को मरे पूरा दिन नहीं हुआ और यह बेहया दुकान लगाकर बैठी है।”
दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुज़ाते हुए कह रहे थे कि “अरे जैसी नीयत होती है अल्लाह भी वैसी ही बरकत देता है।”
फ़ुटपाथ पर बैठा एक आदमी कहता है,“अरे इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टूकड़े के लिए जान दे देते हैं। इनके लिए खसम-लुगाई, बेटा-बेटी तथा धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।”
परचून की दुकान पर बैठे लालाजी ने कहा,“ अरे भाई, उनके लिए मरे-जिये का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म और ईमान का तो खयाल रखना चाहिए। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। किसी ने खरबूज़े खरीद लिए तो उसका धर्म-ईमान कैसे रहेगा?
2. पास-पड़ोस की दुकानों पर पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर- बुढ़िया फ़ुटपाथ पर खरबूज़े बिक्री के लिए रखकर रो रही थी तब लेखक ने उसके रोने का कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि उसका तेईस बरस का जवान बेटा मर गया था। बुढ़िया का बेटा भगवाना मुँह अँधेरे अपने खेत से खरबूज़े तोड़ने के लिए गया था। अँधेरे में कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। थोड़े समय के लिए खेत की गीली मेड़ पर विश्राम करते वक्त गलती से उसका पैर साँप पर पड़ता है और साँप के डँसने से उसकी मृत्यु होती है। भगवाना की माँ उसे बचाने के लिए ओझा को बुला लाती है। ओझा उसे बचाने के लिए नागदेव की पूजा तथा झाड़-फ़ूँक करता है परंतु भगवाना नहीं उठता है। ओझा घर में बचा अनाज और आटा ले जाता है। उसकी विदाई के लिए कफ़न लाना था जिसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना भी बिक जाते हैं। भगवाना की पत्नी बुखार से तवे की तरह तप रही थी। बच्चे भूख से बिलबिलारहे थे। कोई उधार भी नहीं दे रहा था। अपने परिवार की जिम्मेदारी को उठाए भगवाना ने तोड़े हुए खरबूज़े लेकर बुढ़िया उन्हें बेचने के लिए बाज़ार जाती है।
3.भगवाना को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर- बुढ़िया ने भगवाना को बचाने के लिए अनेक उपाय किए। गाँव में अस्पताल की कोई सुविधा नहीं थी। साथ ही बुढ़िया अनपढ़ भी थी इसलिए वह अपने बेटे को बचाने के लिए डॉक्टर की जगह ओझा को बुला लाती है। ओझा भगवाना को बचाने के लिए अनेक उपाय करता है लेकिन उन उपायों का कुछ फ़ायदा नहीं होता है। भगवाना का शरीर साँप के विष के कारण काला पड़ गया था। उसे बचाने के लिए ओझा ने नागदेव की पूजा तथा झाड़-फ़ूँक की लेकिन भगवाना नहीं उठ सका। अंधश्रद्धा और खराब आर्थिक स्थिति के कारण बुढ़िया अपने बेटे की जान गँवा बैठी।
4. लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
उत्तर- लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए अपने पड़ोस की संभ्रांत महीला को याद किया। संभ्रांत महीला का भी जवान बेटा मर गया था। अपने बेटे की मौत से वह अढ़ाई मास तक पलंग से उठ नहीं पाई। पुत्र के वियोग में उसे पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद मूर्छा आ जाती थी। दो-दो डॉक्टर उसके सिरहाने बैठे रहते। मूर्छा न आने की स्थिति में आँखों से आँसू न रुकते थे। हर समय सिर पर बरफ़ रखी जाती थी। पूरे शहर के लोग इस पुत्र-वियोगिनी के दु:ख से द्रवित हुए थे। बुढ़िया का दु;ख भी उस संभ्रांत महिला के समान ही था। जिसका कमाने वाला जवान बेटा मर गया था। अंतर इतना ही था कि संभ्रांत महिला के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी जिससे उस महिला को दु:ख मनाने का अधिकार और सहूलियत थी परंतु बुढ़िया के घर के हालात अच्छे न होने के कारण उसे दु:ख मनाने का अधिकार और सहूलियत नहीं थी।
5. इस पाठ का शीर्षक ‘दु:ख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक ने इस इस पाठ का शीर्षक ‘दु:ख का अधिकार’ रखा है जो सर्वथा उचित है। समाज में लोगों को समान रुप से देखा जाए इसलिए अनेक अधिकार हमारे संविधान ने प्रदान किए है। समाज में कोई भी दुर्बल ना रहे तथा किसी को भी सुख व समाधान से वंचित ना रहना पड़े इसलिए अलग-अलग अधिकार दिए हैं। लेखक के अनुसार जैसे शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और न्याय का अधिकार आदि। अनेक अधिकार एक नागरिक को प्राप्त है। ठीक उसी प्रकार ‘दु:ख मनाने का अधिकार’ भी होना चाहिए, जो हर एक नागरिक को दु:ख मनाने के लिए सहूलियत और अधिकार प्रदान करे। कहानी में बुढ़िया को अगर यह दु:ख का अधिकार और सहूलियत मिलती तो बुढ़िया भी उस संभ्रांत महिला की तरह अपने बेटे के जाने पर शोक मनाती। इस दु:ख भरे प्रसंग में उसे घर से बाहर निकलना नहीं पडता और ना ही समाज के उन चंद लोगों द्वारा उसे अपमानित होना पड़ता।
ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती हैं।
आशय- लेखक का मानना है कि पोशाक मनुष्य का दर्ज़ा, सम्मान और उसको समाज में विशेष अधिकार प्रदान करती है। जैसे आसमान में उड़ती हुई पतंग की डोर टुटने पर उसे हवा जमीन पर एकदम से गिरने नहीं देती। उसे अपने प्रवाह के साथ धीरे-धीरे जमीन पर लाती है। ठीक उसी प्रकार हमारी पोशाक खास परिस्थितियों में हमारा दर्जा और इज्ज़त झुकने से बचाती है।
2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।
आशय- बेटे को मरे हुए पूरा दिन भी नहीं गुज़र था कि बुढ़िया खरबूज़े बेचने बाज़ार जाती है। उसके घर में सूतक होने पर भी वह खरबूज़े बेचने फ़ुटपाथ पर बैठती है। बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचता देखकर उसके बारे में घृणा से बातें कर रहे थे। उसमें से एक आदमी उसके बारे में कहता है, इनके लिए बेटा-बेटी मरे, पती-पत्नि मरे या किसी का धर्म- ईमान भ्रष्ट हो जाए कुछ फ़रक नहीं पड़ता। ये लोग रोटी के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
३. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और ... दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।
आशय- लेखक उस बुढ़िया के दु:ख का अंदाज़ा लगाने के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली संभ्रांत महिला के बारे में सोचते हैं। उसका भी बुढ़िया के समान दु:ख था लेकिन उसके घर के हालात अच्छे थे जिससे वह शोक मना सकती थी। बुढ़िया के घर के हालात ठीक न होने से अपने दु:ख को मन में ही दबाकर बाज़ार में खरबूज़े बेचने जाती है। लेखक की इसपर सोच है कि बुढ़िया की तरह उन सभी लोगों को शोक करने व गम मनाने का अधिकार और सहूलियत होनी चाहिए।