डायरी का एक पन्ना
सीताराम सेकसरिया
जीवन परिचय
* जन्म - 1892 में राजस्थान के नवलगढ़
* क्रांतिकारी तथा स्वंतत्रता सेनानी
* गांधीजी के आह्वान पर स्वंतत्रता संग्राम में भाग
* हिंद फ़ौज के मंत्री भी थे।
* गांधीजी. सुभाषचंद्र बोस, रवींद्रनाथ ठाकुर के करीबी
* भारत सरकार की ओर से 1962 में पद्मश्री सम्मान
* रचनाएँ - स्मृतिकण, मन की बात, बीता युग और नय़ी याद आदि।
प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर - कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी दिन अंग्रेज़ी हुकूमत के समय कलकत्ता के साथ संपूर्ण भारत देश में गुलामी भारत देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस बड़ी धुमधाम से मनाया गया था।
2. सुभाषबाबू के जुलूस का भार किस पर था?
उत्तर - सुभाष बाबू के जुलूस में अधिक संख्या में लोग एकत्र होने वाले थे इसलिए इस जुलूस का भार पूर्णोदास पर। मतलब इंतज़ाम की जिम्मेदारी पूर्णोदास पर थी।
3. विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर - श्रद्धानंद पार्क में वि्द्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर यह प्रतिक्रिया हुई कि पुलिस ने उनको पकड़ लिया और वहाँ पर जो भीड़ इकट्ठा हुई थी; उनको मारा और वहाँ से हटा दिया।
4. लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फ़हराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे ?
उत्तर - 26 जनवरी 1031 के दिन कलकत्ता के लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फ़हराकर यह संकेत देना चाहते थे कि सच में देश आज़ाद हुआ है और उन्हें अंग्रेजी हुकूमत से बिलकुल भी डर नहीं लगता है।
5. पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था?
उत्तर - पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को घेर लिया था ताकि जो लोग जुलूस निकालकर अधिक संख्या में वहाँ इकट्ठा हो रहे थे और झंडा फ़हराकर प्रतिज्ञा पढ़ रहे थे, उन्हें रोका जा सके।
लिखित
क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1. 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं?
उत्तर - 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए पूरे कलकत्ता शहर को सजाया गया था। हर मकान की छत पर तीरंगा लहराया गया था। कलकत्ता के प्रत्येक भाग में झंडे लगाए गए थे। मकानों को ऐसे सज़ाया गया था, जिसे देखकर मालुम होता था जैसे आज़ादी मिल गई हो। हर एक रास्ते पर चलते लोगों में नवीनता और उत्साह मालुम होता था। कलकतावासियों में प्रचार के लिए दो हज़ार रुपये खर्च किए थे। संपूर्ण कलकत्ता शहर में आज़ादी का महौल बना हुआ था
2. ‘आज जो बात थी वह निराली थी’- किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - 26 जनवरी 1931 के दिन पूरे कलकत्ता शहर में गुलामी भारत देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस बड़ी धुमधाम से मनाया था। सभी लोग जुलूस लेकर मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फ़हरा रहे थे और आज़ादी की प्रतिज्ञा पढ़ रहे थे। अंग्रेज़ी पुलिस के विरोध में जाकर ऐसी सभा होना, लोगों का झंड़ा फ़हराना और प्रतिज्ञा पढ़ना एक खुला चैलेंज था इसलिए इस दिन को निराला दिन कहा है।
3. पुलिस कमिश्नर की नोटिस और कौंसिल की नोटिस में क्या अंतर था?
उत्तर - 26 जनवरी 1931 के दिन दो नोटिस निकली थी। जिसमें पुलिस कमिश्नर की नोटिस में लिखा था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। अगर कोई सभा में भाग लेता है तो उसे दोषी समझा जाएगा। तो दूसरी तरफ़ कौंसिल की तरफ़ से निकली नोटिस में लिखा था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फ़हराया जाएगा और प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। इस सभा में सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए।
4. धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?
उत्तर - जुलूस धर्मतल्ले के मोड़ तक आते-आते भीड़ ज्यादा हो जाती है। जब पुलिस भीड़ को आगे बढ़ने से रोक सकने में असफ़ल होती है तब वह भीड़ पर जोरों से लाठीचार्ज करती है। जिसमें अनेक लोग घायल हो गए थे। अनेकों के तो सिर फ़ट गए थे। स्त्रियाँ भी मोनुमेट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फ़हराकर घोषणा पढ़ रही थी। ऐसे में पुलिस सुभाष बाबू को पकड़कर लालबाज़ार लॉकअप में डालने और जोरों से लाठियाँ चलने से जुलूस टूट जाता है।
5. डॉ. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खिंचने की क्या वजह हो सकती थी?- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - डॉ. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख के साथ उनके फ़ोटो भी उतरवा रही थी ताकि अंग्रेज़ी शासन की अत्याचारी प्रवृत्ति का पूरी दुनिया के सामने पर्दाफ़ाश हो। इसके अलावा भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को पता चले कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक क्रांतिकारियों का योगदान क्या था तथा इतिहास भविष्य में उजागर हो। अखबार की सुर्खियों से इन फ़ोटो द्वारा अंग्रेजों की असलियत को सामने लाया जा सके।
ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए।
1. सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री-समाज की क्या भूमिका थी?
उत्तर - सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री-समाज की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। पुरुषों के बराबर स्त्रियाँ भी जुलूस में शामील होकर झंड़ा हाथों में लेते हुए प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। जब धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस टूटा और पुरुषों पर पुलिस ने लाठियाँ बरसाई तब इन्हीं स्त्रियों ने आगे आते हुए मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडे फ़हराये और घोषणाएँ दी। इसमें से 50-60 स्त्रियाँ वहीं मोड़ पर बैठकर घोषणाएँ देने लगी तब पुलिस ने उनको पकड़कर लालबाज़ार लॉकअप में डाला। स्त्रियों का नेतृत्व विमल प्रतिभा करती हुई बहूबाज़ार के मोड़ पर बैठ गई और नारे देने लगी। बाद में पुलिस द्बवारा कुलमिलाकर 105 स्त्रियाँ पकड़ी गई और लालबाज़ार लॉकअप डाली गई।
2. जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
उत्तर - सुभाष बाबू के जुलूस लेकर आते ही बहुत अधिक भीड़ इकट्ठा हो गई। भीड़ अधिक होने से पुलिस भीड़ को रोक नहीं पाई। मैदान के पास पहुँचते ही पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए लाठियाँ चलानी शुरु कर दी। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। पुलिस ने बाद में सुभाष बाबू को गाड़ी में बिठाकर लालबाज़ार लॉकअप में डाला। अनेक लोगों के सिर फ़ट गए। क्षितीश चटर्जी का फ़टा सिर देखकर तो लेखक की आँख मिंच जाती थी। स्त्रियों पर भी लाठियाँ चल रही थी। स्त्रियाँ वहीं मोड पर बैठ गईं। बाद में पुलिस की लारी आई और सबको लालबाज़ार के लॉकअप में डाला गया। पिलिस के लाठीचार्ज में अनेक लोग घायल हो गए। वालेंटियर तो लाठियाँ पड़ने पर भी अपने स्थान से हटते नहीं थे।
3. ‘जब से कानून भंग का काम शुरु हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन-से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर - अंग्रेज़ी कानून के खिलाफ़ पहली बार ऐसी सभा हुई थी। यह सभा तो ओपन लड़ाई थी। भारत देश में अंग्रेजों ने अपना शासन तथा कानून लागू किथा था। अंग्रेज़ी कानून के अनुसार कोई भी सभा नहीं हो सकती थी तथा तिरंगा झंडा न फ़हराने की सख्त सूचना दी गई थी। कलकत्ता सहीत संपूर्ण भारत भर गुलामी देश में दूसरी बार स्वतंत्रता दिवस बड़ी धुमधाम से मनाया जा रहा था। कलकत्ता पर पहले साल कलंक लगा था कि यहाँ कोई काम नहीं हो रहा। इसी कलंक को धोने के लिए कलकत्ता वासियों ने झंडा फ़हराने और आज़ादी की प्रतिज्ञा पढ़ने के लिए जोरों से तैयारियाँ शुरु की थी। सुभाष बाबू की सभा होने वाली थी इसलिए इस सभा में भाग लेने के लिए लोगों की बहुत बड़ी भीड़ जमा हुई थी। जिसे देखकर ऐसा लगता था कि मानो यह ओपन लड़ाई थी। अंग्रेज़ी शासन द्वारा हमारी ही जन्मभूमि पर हो रहे अत्याचारों को रोकना जरुरी था ऐसे में मानवता विरोधी कानून को भी क्यों न भंग करना पड़े। हमारी नज़र में अंग्रेज़ी कानून को भंग करना उचित था क्योंकि कोई ऐसा कानून जो देश विरोधी या मानवता विरोधी हो तो उसको भंग करना ही उचित होगा।
3. ‘बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत सी स्त्रियाँ जेल गईं, फ़िर भी इस दिन को अपूर्व कहा गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - 26 जनवरी 1931 के दिन को अपूर्व कहा गया है क्योंकि इस दिन कलकत्ता में जो हुआ इसके पहले कभी भी नहीं हुआ था। इस दिन सुभाष बाबू के नेतृत्व में कलकत्ता में जुलूस निकला था जिसमें भारी संख्या में भीड़ इकट्ठा हुई थी। पिलिस ने भीड़ को रोकने के लिए लाठीचार्ज किया जिसमें अनेक लोग घायल हो गए। अनेक स्त्रियों तथा पुरुषों को पुलिस ने जेल में डाला फ़िर भी लोग पीछे नहीं हटे। लोगों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंड़ा फ़हयारा और आज़ादी की प्रतिज्ञा पढ़ी। यह सभा मतलब अंग्रेज़ों के खिलाफ़ ओपन लड़ाई थी। गुलामी देश में कलकत्ता में दूसरा स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया गया इसलिए यह दिन अपूर्व था।
ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
1. आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।
आशय- 26 जनवरी 193० को पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इसमें कलकत्तावासियों का योगदान बहुत ही कम था। जिससे बंगाल या कलकत्ता के नाम पर यह कलंक लगा था कि यहाँ स्वतंत्रता दिवस पर कुछ काम नहीं हो रहा है। लेकिन अगले साल इसी दिन 26 जनवरी 1931 के दिन कलकत्ता में दूसरा स्वतंत्रता दिवस जोरों से मनाया गया तब कलकत्ता के नाम पर जो कलंक लगा हुआ था कि यहाँ कोई काम नहीं हो रहा है वह अधिक अंश में धुल गया था।
2. खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।
आशय - कलकत्तावासियों ने 26 जनवरी 1931 के दिन दूसरा स्वतंत्रता दिवस अंग्रेज़ों का विरोध करते हुए मनाया गया था। उस दिन सुभाष बाबू का जुलूस और सभा होने वाली थी। लोगों द्वारा जगह-जगह तीरंगा फ़हराकर आज़ादी की प्रतिज्ञा पढ़ी जा रही थी। पुलिस द्वारा लाठियाँ पड़ने पर भी लोग पीछे नहीं हट रहे थे। ऐसे लग रहा था मानो ओपन लड़ाई थी। उस दिन की सभा अंग्रेज़ों को खुला चैलेंज देकर ली गई अपूर्व सभा थी।