रैदास के पद
कवि परिचय -
* रैदास का जन्म- 1388 में और मृत्यु 1518 में बनारस में हुई।
* रैदास का वास्तविक नाम रविदास था।
* रैदास भी कबीर की तरह निर्गुण भक्ति धारा के कवि माने जाते हैं।
* मूर्तिपूजा तथा तीर्थयात्रा इन बातों पर उनका जरा भी विश्वास नहीं था।
* ये निर्गुण राम की पूजा करते थे। उनका मानना था कि भगवान सृष्टि के कण-कण में समाये हुए हैं।
* ये आपसी भाईचारे और आंतरिक भावनाओं को महत्व देते थ।
* कबीर की तरह ही इनकी भाषा में भी अनेक भाषाओं का मिश्रण पाया जाता है। जैसे- ब्रज, अवधी, राजस्थानी, खड़ीबोली तथा उर्दू-फ़ारसी आदि।
* इनके अनेक पद सीखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु-ग्रंथ साहब’ में संकलित हैं।
प्रश्न-अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर- रैदास ने अपने पहले पद में भगवान और भक्त (रैदास) की निम्नलिखित चीजों से तुलना की है-
* प्रभु चंदन तो भक्त पानी है।
* प्रभु घन(बादल) तो भक्त मोर है।
* प्रभु चाँद तो भक्त चकोर (पक्षी) है।
* प्रभु दीपक तो भक्त बाती है।
* प्रभु मोती तो भक्त धागा है।
* प्रभु सुहागा तो भक्त सोना है।
* प्रभु स्वामी तो भक्त दास है।
ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है। जैसे - पानी-समानी आदि। इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर- पहले पद में आये तुकांत शब्द निम्नलिखित हैं-
* पानी-समानी
* मोरा- चकोरा
* बाती-राती
* धागा-सुहागा
* दासा-रैदासा
ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबंद्ध हैं । ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए-
उत्तर- * दीपक - बाती
* मोती - धागा
* सोना - सुहागा
* स्वामी - दास
घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ भगवान को कहा है। गरीब निवाजु का मतलब ‘गरीबों पर दया करने वाला’। कवि भगवान को गरिब निवाजु इसलिए कहते हैं क्योंकि भगवान सदैव अपने भक्तों तथा गरीबों पर दया दिखाते हैं।
ड.) दूसरे पद की ‘जाकि छोती जगत कउ लागै ता पर तु हीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- रैदास कहते हैं कि भगवान दुनिया में जो अस्पृश्य (नीचली जाति के) लोग हैं उनपर भी समान रुप से द्रवित होते हैं। मतलब अस्पृश्य लोगों पर भी बिना भेदभाव किये अपनी कृपा बनाये रखते हैं।
च) रैदास ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?
उत्तर- रैदास अपने स्वामी को लाल, गोविंद, गुसईआ, गरीब निवाजु तथा हरि इन नामों से पुकारा है।
छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप लिखिए-
उत्तर- * मोरा - मोर
* चंद - चाँद
* बाती - वाती
* जोति - ज्योति
* बरै - जलना
* राती - रात
* छत्रु - छत्र
* धरै- धरना
* छोति - अस्पृश्यता
* तुहीं - तुम पर
* गुसईआ - स्वामी
2) नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट ्कीजिए-
क. जाकि अँग-अँग बास समानी
भाव - जिसकी अंग-अंग (शरीर) में बास (खुशबू) समायी है। मतलब राम की खुशबू संपूर्ण शरीर में समायी हुई है।
ख. जैसे चितवत चंद चकोरा
भाव - जैसे चकोर पक्षी चाँद को देखता रहता है। मतलब चाँद को देखकर चकोर पक्षी अपनी प्यास बुझाता रहता है।
ग. जाकि जोति बरै दिन राती
भाव - जिसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है। मतलब दीपक और बाती से जलने वाली ज्योति का प्रकाश दिन-रात फ़ैलता है।
घ. ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
भाव - लाल! आपके जैसा कार्य कोई भी नहीं करता। मतलब भगवान की तरह कार्य कोई भी नहीं करता।
ड. नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै
भाव - नीच को भी ऊँच गोविंद करते हैं। मतलब गोविंद (भगवान) नीचली जाति के लोगों का भी भला करते हैं और यह कार्य करते समय वह किसी से भी नहीं डरते।
3. रैदास के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में कीजिए।
भाव- रैदास भगवान राम की भक्ति करते हैं। उनके मुँह से सतत राम नाम की रट लगी हुई है, उसे वे छुडाना चाहते हैं फ़िर भी नहीं छुडा पाते हैं। वे अपनी और प्रभु की तुलना अनेक उदाहरणों द्वारा करते हुए बताना चाहते हैं कि उनके प्रभु उनके अंतर्मन में बसे हुए हैं और उन्हें उनसे कोई भी अलग नहीं कर सकता। अपने प्रभु को अलग-अलग नामों से पुकारते हुए कवि कहते हैं कि हे भगवान! आपके जैसा कार्य कोई भी नहीं कर सकता है। भगवान की शरण में जो भी आता है उसपर उनकी कृपा दृष्टि बनी रहती है। भगवान ने कबीर, नामदेव, त्रिलोचन, सधना तथा सैनु जैसे अनेक अलग-अलग नीचली जाति के लोगों का उद्धार किया है। रैदास अपने पदों के माध्यम से यही कहना चाहते हैं कि भक्त जब सच्चे मन से भगवान को याद करते हैं तो भगवान उनका जीवन हमेशा खुशियों से भर देते हैं।