आमत्राण
रवींद्रनाथ ठाकुर
जन्म परिचय -
* जन्म- ६ मई १८६१ को बंगाल में हुआ।
* भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता ( गीतांजलि काव्य कृति के लिए)
* शांति निकेतन नाम की शैक्षिक संस्था शुरु की।
* प्रमुख कृतियाँ - नैवेद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत
शब्दार्थ - आत्मत्राण का मतलब आत्मा की रक्षा करने के लिए
कविता -
विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दु:ख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय॥
कविता का भावार्थ -
कवि रवींद्रनाथ ठाकुर भगवान से प्रार्थना करते हैं। हे प्रभु! आप मुझे विपदाओं (संकट) से बचाओ ऐसी मेरी प्रार्थना नहीं है। लेकिन हे करुणामय! आप मेरे लिए केवल इतना कीजिए कि संकटों को देखकर मैं भयभीत न होऊँ ऐसी शक्ति मुझमें निर्माण कर देना। कवि कहते हैं कि हे प्रभु! मेरे दु:ख तथा पीड़ा को देखकर आप मेरी सांत्वना (समाधान) मत करना परंतु हे करुणामय! मेरे लिए केवल इतना करना कि दु:ख पर मैं सतत विजय प्राप्त कर सकूँ। ऐसी शक्ति मुझे प्रदान करना। मुसीबत के समय कोई मेरी सहायता करने के लिए आगे नहीं आता है तब भी मेरा बल और पौरुष बिल्कुल भी न हिले। मुझे बार-बार दुनिया में नुकसान उठाना पड़े तथा मुझे ऐसा लगे कि लाभ भी मुझे धोखा दे रहा है। इस बुरे समय में भी मुझे ऐसे ना लगे कि मेरा बहुत बड़ा नुकसान हो गया है।
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय-
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दु:ख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करू नहीं कुछ संशय॥
कविता का भावार्थ -
कवि भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे करुणामय! आप मेरी हरदिन रक्षा करो ऐसी मेरी प्रार्थना नहीं। लेकिन मेरी भक्ति से प्रसन्न होकर मुझे हर एक संकट से नीरोगी बनकर बाहर निकलने की शक्ति प्रदान करें। हे करुणामय! मेरी जिंदगी का भार (वजन)छोटा करके मेरा समाधान मत करना बल्कि मेरी प्रार्थना रहेगी कि इस भार को मैं निर्भय होकर उठा सकूँ ऐसी शक्ति प्रदान करना। हे करुणामय! सुख के दिनों में मेरा शिर आपके सामने झुका रहे। मतलब आपको मैं सुख तथा दु:ख दोनों स्थितियों में निस्वार्थ भाव सॆ याद करुँ ऐसी भक्ति की भावना मुझमें निर्माण करना। मुझे दु:ख की रात्रि में (दु:ख की स्थिति) संपूर्ण धरती धोखा दे तब भी हे करुणामय ! मैं आपकी उदारता पर संशय ना करूँ। मतलब मेरे दु:ख के समय पूरी धरती के लोग मेरी मदद करने के लिए आगे नहीं आना चाहे तब भी मुझे ऐसे नहीं लगना चाहिए कि भगवान ने भी मेरा साथ छोड दिया। हे करुणामय! आप पर मेरा विश्वास हमेशा बना रहे।
प्रश्न-अभ्यास
क. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहे हैं?
उत्तर- कवि भगवान से अपनी आत्मा या मन की रक्षा करने की प्रार्थना कर रहे हैं।
2. `विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर- कवि भगवान से प्रार्थना करते हैं कि संकटों से मुझे बचाओ यह मेरी प्रार्थना नहीं बल्कि उस संकटों से बाहर निकलने की शक्ति प्रदान करो।
3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर- कवि संकट के समय सहायक के (मदद करने वाला) न मिलने पर प्रार्थना करता है कि मेरा बल और पौरुष न हिले मतलब मेरी शक्ति और पुरुषत्व कमज़ोर न हो तथा मैं खुद के बल पर उस संकट से बाहर निकलूँ।
4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर- कविता के अंत में कवि भगवान से यह अनुनय ( प्रार्थना) करते हैं कि हे करुणामय! दु:ख या मुसीबत के समय संपूर्ण धरती भी मेरा साथ छोड़ देती है तब भी मेरा आपके प्रति विश्वास बना रहे। मैं मन संदेह ना करुँ कि भगवान ने भी सभी की तरह मेरा साथ छोड़ दिया।
5. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘आत्मत्राण’ शीर्षक का अर्थ है- आत्मा की रक्षा के लिए पुकार। कविता का शीर्षक कविता को पूरी तरह सार्थक होता है। कवि को पता है कि आत्मा की रक्षा होती है, मतलब आपकी आत्मा या मन में जब तक विश्वास भरा है तब तक आपको कोई भी संकट या बाधाएँ कमज़ोर नहीं बना सकती। इसलिए बार-बार कवि भगवान से अपनी आत्मा तथा मन को शक्ति प्रदान करने की बात कर रहे हैं।
6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर- अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम प्रार्थना के अतिरिक्त भगवान को भोग लगाने का काम करते हैं। भगवान के पूजास्थल पर दीप तथा धूप लगाते हैं। भगावान से अपने काम पूरे कराने के लिए मनौती मनाते हैं। भजन-किर्तन में मन लगाकर भगवान के प्रति अपने मन में श्रद्धा भाव जगाते हैं।
7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर- हाँ, कवि के द्वारा की गई यह प्रार्थना हमें अन्य प्रार्थनाओं से अलग लगती है। अन्य भक्तों द्वारा की गई प्रार्थना में स्वार्थ या फ़ायदा छिपा हुआ देखने मिल सकता है, जो भगवान की सच्ची भक्ति की पहचान नहीं कराता है। अन्य प्रार्थना गीतों में कवि भगवान से अपने संकटों को दूर करने की बात करते हैं। लेकिन इस प्रार्थना गीत में भगवान से पीड़ा, संकट तथा दु:ख दूर करने की बात न करते हुए, इन सभी बातों से तरने के लिए मन में विश्वास निर्माण करने की बात की जा रही है। कवि भगवान की शक्ति पर निर्भर न रहकर अपने मन में आत्मविश्वास भरने की प्रार्थना भगवान से करते नज़र आ रहे हैं।