Parvat Pradesh .. NCERT Class -10 Qustion Answer (पर्वत प्रदेश में .. भावार्थ एवं सरल एवं सटिक उत्तर)
पर्वत प्रदेश में पावस
सुमित्रानंदन पंत
कवि परिचय -
* सुमित्रानंदन पंत का जन्म २० मई, १९०० को उत्तराखंड के कौसानी में हुआ।
* पंत जी को ‘प्रकृति का सुकुमार’ कवि इस उपनाम से भी जाना जाता है।
* हिन्दी के प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता।
* ‘चिदंबरा’ कविता संग्रह के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
* प्रमुख रचनाएँ- वीणा, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्या, लोकायतन।
* २८ दिसंबर १९७७ को निधन
कविता का भावार्थ -
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग -सुमन फ़ाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
- जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फ़ैला है विशाल !
शब्दार्थ-
* मेखलाकार- गोलाकार या करधनी के समान आकार
* सहस्त्र- हज़ार
* दृग- आँख
* सुमन- फ़ूल
* फ़ाड़- खोलकर
* अवलोकना- देखना
* निज- खुद का
* महाकार- बड़ा आकार
* चरण- पैर
* ताल- तालाब
* दर्पण- आइना
* विशाल - बड़ा
भावार्थ - कवि उपर्युक्त पंक्तियों के माध्यम से प्रकृति का सुंदर चित्रण करते हैं। कवि ने इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। कवि प्रकृति को मनुष्य के रुप में चित्रित करते हैं। बरसात के मौसम में पर्वतीय प्रदेश में सतत बदलते प्राकृतिक दृश्यों को देखने के बाद कवि ऐसी कल्पना करते हैं कि प्रकृति मानो वेश बदल रही है। पर्वत फ़ूल रुपी आँखों से बार-बार नीचे तालाब के जल में अपने महाकार को देख रहा है। कवि ने इस तालाब के जल को दर्पण के समान बताया है। दर्पण जैसे साफ़-सुथरा, स्वच्छ, निर्मल होता है, ठीक वैसे ही तालाब का पानी भी होता है। कवि कहना चाहते हैं कि जैसे एक मनुष्य अपने रुप को आइने में देखता है, ठीक वैसे ही पर्वत भी तालाब में अपने महाकार को देख रहा हो।
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर।
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर !
गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकाक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
अचानक उड़ गया लो,- भू-धर
फ़ड़का अपार पारद के पर !
शब्दार्थ-
* गिरि- पर्वत
* गौरव - महानता
* मद - मस्ती
* निर्झर - झरना
* उच्चाकांक्षा - ऊँचा उड़ने की इच्छा
* तरुवर - वृक्ष
* नीरव - शांत
* अनिमेष - बिना पलके झपकाए
* अटल - सतत, बिना टले
भावार्थ -
कवि अपनी कल्पना से पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति के सुंदर दृश्यों का वर्णन करते हैं कि पर्वत से बहते हुए झरनों की आवाज़ सुनकर ऐसे प्रतीत होता है जैसे झरने गिरि की महानता के गीत गाते हुए बह रहे हैं। झरनों का यह संगीत सुनकर कवि की नसों तथा शरीर में एक प्रकार से उत्साह, जोश या मस्ती का संचार हो रहा है। पर्वत से बरसात में बहते हुए झाग भरे झरनों को देखने से ऐसा लग रहा है कि मानो पर्वत ने अपने गले में मोतियों की लड़ियों-सी सुंदर मालाएँ पहनी हैं। पर्वत पर उग आए ऊँचे-ऊँचे वृक्ष देखने से कवि कल्पना करते हैं कि ये वृक्ष पर्वत के हृदय से ऊँचा उठने की प्रेरणा लेकर शांत आसमान की तरफ़ देख रहे हो। ये ऊँचे वृक्ष एकटक, बिना पलकें झपकाएँ तथा चिंता से आसमान को देख रहे हैं। कवि के कहने का तात्पर्य है कि मानो ये पेड़ हम मनुष्यों को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी तरह मनुष्य को भी आसमान को छुने के ( जिंदगी में महान कार्य करने ) लिए प्रयास करते हुए सफ़ल होना चाहिए।
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फ़ड़का अपार पारद के पर!
रव-शेष रह गए निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गया धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
यों जलद यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
शब्दार्थ-
* भूधर- पहाड़
* पारद के पर- चमकीले पंख
* रव-शेष - सिर्फ़ आवाज़ शेष रहना
* सभय - भय के साथ
* शाल - एक वृक्ष की जाति
* ताल - तालाब
* जलद-यान - हवाई जहाज़ ( बादल को कहा है)
* विचरना- घूमना
* इंद्रजाल - इंद्र देव की जादू
भावार्थ-
कवि बरसात के मौसम में आसमान में बादलों के छाने से होनेवाले परिवर्तन का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हैं। बादलों के आसमान में छाने से पर्वतीय दृश्यों में शून्यता आ जाती है। मतलब पर्वत दिखाई नहीं देता है।। इससे ऐसा लगता है कि मानो पर्वत चमकीले पंख (पारद के पर) लगाकर आसमान में उड़ गया हो। सिर्फ़ झरनों की आवाज़ सुनाई दे रही है। कवि को ऐसा भी प्रतीत हो रहा है, जैसे आसमान धरती पर टूट पड़ा हो। पर्वत पर उग आए, ऊँचे-ऊँचे शाल के पेड़ दिखाई न देने से कवि ने कल्पना की है, मानो पेड़ गिरते आसमान को देखकर ड़र से धरती में धँस गए हो। कोहरे के कारण तालाब दिखाई न देने से ऐसे लग रहा था कि तालाब में आग लग गई है इसलिए सिर्फ़ धुआँ उड़ता दिख रहा है। पर्वतीय प्रदेश में इन बदलते दृश्यों को देखने से कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे वर्षा के देवता इंद्रदेव बादल रुपी विमान में बैठकर अपना जादू चला रहे हो।
प्रश्न-अभ्यास
क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
१. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौनसे परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पावस ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति के समय-समय पर सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। प्रकृति में होने वाले परिवर्तन-
* प्रकृति बरसात के मौसम में हरी-भरी दिखाई दे रही है। चारों ओर रंग-बिरंगे फ़ूल मन को प्रफ़ुल्लित कर रहे हैं।
* बरसात के कारण नदियाँ, झरने तथा तालाब पानी से भरे हुए हैं। बहते पानी की आवाज़ मानो संगीत के समान मन को प्रसन्न कर रही है।
* पर्वत से बहते हुए झाग भरे झरनें मोतियों की माला के समान सुंदर दिख रहे हैं।
* आसमान में छाए बादल और कोहरे से समय-समय पर दृश्य गायब होने जैसे प्रतीत हो रहे हैं।
* कोहरे के छाने से ऊँचे-ऊँचे शाल के पेड़ आसमान को छुते, तो कभी अचानक अदृश्य होते हुए नज़र आ रहे हैं।
२. मेखलाकार शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
उत्तर- मेखलाकार शब्द का अर्थ है- गोल आकार का या करधनी के आकार-सा। इसका प्रयोग कवि ने पर्वत के गोल आकार को दर्शाने के लिए प्रयुक्त किया है। पर्वत का जमीन से लगा भाग चारों ओर से गोलाकार - सा होता है।
3. ‘सहस्त्र दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
उत्तर- ‘सहस्त्र दृग सुमन’ का अर्थ है- हज़ार पुष्परुपी आँखें। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वत पर खिले हज़ारों फ़ुलों के लिए किया है। कवि कल्पना करते हैं कि पर्वत पर खिले ये फ़ूल मानो पर्वत की आँखें हैं। पर्वत इन फ़ूलरुपी आँखों से अपना आकार नीचे तालाब में देखता है।
४. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर- कवि ने तालाब की समानता दर्पण (आइना) के साथ दिखाई है। जैसे दर्पण साफ़-सुथरा, स्वच्छ, निर्मल होता है, जिसमें हम अपना प्रतिबिंब देखते हैं। तालाब का पानी भी ठीक वैसा ही होता है, जिसमें पर्वत का प्रतिबिंब साफ़ दिखाई देता है।
५. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर - पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे शाल के वृक्ष आसमान की ओर देख रहे थे क्योंकि उनके मन में उच्चाकांक्षा (ऊँचा उड़ने की इच्छा) है। वे आसमान को छुना चाहते हैं। ये ऊँचे वृक्ष जैसे हमें प्रतिबिंबित करना चाहते हैं कि हमें भी इन पेड़ों की तरह आसमान को छुने की इच्छा मन में रखनी है। मतलब जीवन में सफ़ल होना है।
५. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?
उत्तर- शाल के वृक्ष आसमान को धरती पर टूटता हुआ देख भयभीत होकर धरती में धँस गए। कवि कल्पना करते हैं कि पर्वतीय प्रदेश में उठते धुएँ या कोहरे से ऊँचे वृक्ष दिखाई नहीं देते हैं। अचानक अदृश्य हुए पेड़ों से ऐसे लगता है, जैसे शाल के पेड़ आसमान धरती पर टूट जाने के डर से धरती में धँस गए।
६. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर- पर्वत से बहते हुए झरनों की आवाज़ सुनकर कवि को ऐसा लग रहा है, जैसे झरने पर्वत की महानता का गौरव का गान कर रहे हैं। पर्वत से बहते हुए झाग से भरे झरने ऐसे प्रतीत हो रहे हैं, जैसे मोती की लडियाँ ( मालाएँ) हैं।
ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
१. है टूट पड़ा भू पर अंबर
भावार्थ- पर्वतीय प्रदेश में कोहरे या पानी की भाप से सब पर्वतीय दृश्य गायब हो जाते हैं। बादल के घीरने जैसा दृश्य दिखता है। इससे मानो ऐसा लगता है कि पूरी धरती पर आसमान टूट पड़ा हो।
२. - यों जलद यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल
भावार्थ- बरसात के मौसम में पर्वतीय प्रदेश में पल-पल बदलते दृश्यों को देखने से ऐसे लग रहा है, जैसे बरसात के देवता इंद्र, बादल रुपी विमान में बैठकर इंद्रजाल दिखा रहे हो। या अपनी जादू दिखा रहे हो।
३. गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
भावार्थ- कवि कल्पना करते हैं कि पर्वत के हृदय से ऊँचे-ऊँचे उठे वृक्ष अपने मन में ऊँचा उठने की इच्छा से शांत आकाश को एकटक, सतत और कुछ चिंता से देख रहे हैं। इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे आसमान की ऊँचाई को छुना चाहते हैं।