अग्नि-पथ
हरिवंशराय बच्चन
कवि परिचय -
* हरिवंशराय बच्चन जी का जन्म उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में २७ नवंबर १९०७ को हुआ।
* बच्चन माता-पिता द्वारा प्यार से लिया जाने वाला नाम
* मशुशाला , निशा-निमंत्रण, मिलन-यामिनी, क्या भूलूँ क्या ताद करूँ, नीड़ का निर्माण फ़िर..
कविता का सारांश -
अग्नि -पथ! अग्नि-पथ! अग्नि-पथ
वृक्ष हो भले खड़े,
हों घनें, हों बड़े,
एक पत्र छाह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत !
अग्नि-पथ ! अग्नि-पथ ! अग्नि-पथ !
हरिवंशराय बच्चन जी इस उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा कहना चाहते हैं कि यह जीवन आग के रास्ते के समान संघर्षमय तथा जोख़ीमभरा है। इस पथ पर चलते समय बाधाएँ, संकट तथा कठिनाइयाँ आएँगी। इस पर चलते समय बड़ी सावधानी से चलना चाहिए। एक राही (मुसाफ़िर) को रास्ते पर चलते समय जैसे वृक्ष अपनी छाया से आकर्षित करते हैं और आगे बढ़ने से रोकते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य को उसके संघर्षमय जीवन से सफ़लता की ओर बढ़ते समय कुछ लोग उसे रोकने का काम कर सकते हैं। तो ऐसे समय में एक राही को उस पेड़ की छाया तो दूर उसके एक पत्ते की छाया भी नहीं लेनी चाहिए। मतलब हमें अपने जीवन में बिना किसी के ऊपर निर्भर रहे तथा बिना किसी के सहारे आगे बढ़ते रहना चाहिए।
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी - कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ
अग्नि-पथ ! अग्नि-पथ ! अग्नि-पथ !
हरिवंशराय बच्चन जी उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि हे राही! तुझे इस अग्नि पथ (संघर्षमय जीवन) पर चलते समय यह शपथ लेनी है कि तुझे थकना नहीं है, ना ही तुझे थमना है। क्योंकि अगर तू थकता है, तो तुझे थमना (रुकना) पड़ेगा और थमा तो आधे रास्ते से वापस मुड़ना पड़ेगा। जिससे तू अपनी मंजिल तक नहीं बढ़ सकता इसलिए तू शपथ ले कि यह संघर्षमय जीवन कितना भी कठीन प्रसंगों से भरा हो, लेकिन मैं थकुँगा, रुकुँगा तथा मुडुँगा नहीं जब-तक सफ़लता प्राप्त ना हो।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु-श्वेद-रक्त से - लथ-पथ, लथ-पथ, लथ-पथ,
अग्नि-पथ ! अग्नि-पथ ! अग्नि-पथ !
हरिवंशराय बच्चन जी उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य जब संघर्ष भरे रास्ते पर चलता है तब वह अश्रु, पसीने तथा रक्त से लथपथ होता है। मतलब संघर्ष करते समय आँखों से आँसू निकल सकते हैं। अधिक मेहनत करने से शरीर से पसीना बहाना पड़ सकता है। कभी-कभी ऐसा प्रसंग आ सकता है कि खून भी बहाना पड़ सकता है। मनुष्य अश्रु, श्वेद तथा रक्त से लथपथ होने पर ही उसे सफ़लता मिलेगी और सफ़लता के बाद जो दृश्य देखने मिलेगा, वह महान दृश्य होगा।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
क) कवि ने ‘अग्नि-पथ’ किसके प्रतीक स्वरुप प्रयोग किया है?
उत्तर- कवि ने अग्नि-पथ शब्द का प्रयोग जीवन में आने वाले कठिन प्रसंगों के लिए किया है। अग्नि-पथ का तात्पर्य है- आग के समान रास्ता। मतलब- संघर्ष भरा रास्ता। जीवन में आने वाली कठिनाइयों को पार करना मतलब आग के रास्ते पर चलने के बराबर कठिन होता है।
ख) ‘माँग मत, कर शपथ, लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- कवि इन शब्दों का बार-बार प्रयोग करके मनुष्य के मन में यह बात बिठाना चाहता है कि जीवन संघर्ष से भरा है। इस संघर्ष भरे रास्ते पर मनुष्य को आँसू, पसीने तथा खून से लथपथ होने पर भी संकटों तथा मुसीबतों को घबराकर किसी से सहायता नहीं माँगनी चाहिए। कवि कहते हैं कि हमें शपथ करनी है कि बिना थके, बिना थमे तथा बिना मुड़े अपने ध्येय तक पहुँचना है।
ग) ‘एक पत्र छाँह भी माँग-मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कवि कहते हैं कि जैसे एक मुसाफ़िर को रास्ते पर कड़ी धूप में चलते समय पेड़ की छाया में बैठने का मन करता है। लेकिन उसे आगे बढ़ना है तो उसे पेड़ के एक पत्ते की छाया भी नहीं माँगनी चाहिए। ठीक वैसे ही संघर्ष से भरे इस रास्ते पर मनुष्य को चलते समय बिना आराम किए आगे बढ़ते जाना चाहिए।
2. निम्नलिखित भाव को स्पष्ट कीजिए।
क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
आशय- कवि इन पंक्तियों के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य को कठिनाइयों से भरे रास्ते पर चलते समय कभी थमना नहीं चाहिए क्योंकि अगर मनुष्य थमेगा तो आगे नहीं बढ़ेगा। वह आगे बढ़ने की बजाय थमेगा तो उसे वापस मुड़ना पड़ेगा। ऐसे में अगर वह मुड़ता है तो अपने ध्येय तक नहीं पहुँचेगा इसलिए मनुष्य को जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
क) चल रहा मनुष्य है।
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
आशय - कवि इन पंक्तियों के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आने पर बिना रुके आगे चलता जा रहा है। जीवन के इस संघर्ष भरे रास्ते पर आँसू, पसीने तथा खून से लथपथ होकर भी वह निरंतर आगे बढ़ रहा है। कवि इस दृश्य को महान दृश्य बता रहे हैं।
3. इस कविता का मूलभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस कविता का मूलभाव यह है कि मनुष्य का जीवन आग के रास्ते के समान है। इसमें उसे सतत कड़ी मेहनत करते हुए आगे बढ़ना पडता है। कभी-कभी ऐसी चुनौतियाँ आती है कि आँखों के आँसू, शरीर से पसीना तो कभी-कभी खून भी बहाना पड़ता है। फ़िर भी मनुष्य संघर्ष करते हुए बिना ड़रे, रुके और मुड़े आगे बढ़ता है। मनुष्य का जीवन कर्तव्यों को पूरा करने में ही चला जाता है।